पहले राधे मां फिर एक व्यवसायी को महामंडलेश्वर बनाये जाने का विरोध सड़कों पर उतरा था। एक बार फिर हरिद्वार कुम्भ के दौरान अखाड़ों मे महामंडलेश्वर बंनाये जाने हैं. इस लिस्ट में जो नाम सबको चौंका रहा है तो वही कुछ ज़रूरी सवाल भी खड़े कर रहा है.
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सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन कार्य है. शिक्षा, ज्ञान और संस्कार के साथ सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए संन्यासी को महामंडलेश्वर जैसे पद पर बिठाया जाता है. अखाड़ा प्रमुख के पद हासिल करने में संतों को वर्षों लग जाते हैं. शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में अलग-अलग परंपरा है.
शैव मत के अखाड़ों में संन्यास और नागा परंपरा का प्रचलन है. जानकारी के मुताबिक बहुत पहले साधु-संतों की मंडलियां चलाने वालों को मंडलीश्वर कहा जाता था. 108 और 1008 की उपाधि वाले संत के पास वेदपाठी विद्यार्थी होते थे.
अखाड़ों के संतों का कहना है कि ऐसे महापुरुष जिन्हें वेद और गीता का अध्ययन हो, उन्हें बड़े पद के लिए नामित किया जाता था। पूर्व में शंकराचार्य अखाड़ों में अभिषेक पूजन कराते थे, वैचारिक मतभेद के बाद यह काम महामंडलेश्वर के जिम्मे हो गया। अखाड़ों ने अपने महामंडलेश्वर बनाना शुरू कर दिए।
महामंडलेश्वर पद की शर्तें
पहली शर्त आवेदक साधु संन्यास परंपरा से हो।
वेद का अध्ययन, चरित्र, व्यवहारअच्छा हो।
अखाड़ा कमेटी निजी जीवन की पड़ताल से संतुष्ट हो।