मथुरा। कान्हा की नगरी में 100 से अधिक काराखानों में श्रीराधा-कृष्ण की पोशाक एवं मुकुट बनाने में हिन्दू-मुस्लिम भाई दिन रात लगे हुए हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पोशाकों को बनाने का कार्य मुस्लिम समुदाय से जुड़े कारीगर करते हैं, जो पोशाकों को अद्भुत तरीके से बनाते हैं, जिसकी डिमांड विदेशों से भी यहां ब्रज में आती है। यह उद्योग मथुरा के अर्जुनपुरा डीगगेट, वृंदावन में हैं, जहां मुस्लिम भाई भगवान श्रीकृष्ण और राधा की सुंदर और आकर्षक पोशाकें पूरे साल बनाते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर राधा-कृष्ण एवं मुकुटों की डिमांड बढ़ जाती है, मथुरा में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा, नेपाल, स्वीजरलैंड, अफ्रीका से आर्डर आते है, इस वर्ष नीले और सफेद रंगों की पोशाकों की डिमांड सर्वाधिक है।
मथुरा और वृंदावन की गलियों में पोशाक और मुकुट श्रृंगार का व्यवसाय फैला है। 100 से अधिक कारखानों में अधिकांश मुस्लिम समाज के लोग कार्यरत है। लेकिन जन्माष्टमी पर्व में यह कारीगर दिन-रात एक कर ठाकुरजी के लिए मुकुट, पोशाक और श्रृंगार का सामान तैयार करते हैं। जिसमें ठाकुर जी का मुकुट, गले का हार, पायजेब, बगलबंदी, चूड़ियां और कान का कुंडल कारखानों में तैयार होते हैं।
वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर के करीब पोशाक विक्रेता आशीष ने बताया कि यूं तो पूरे साल वृंदावन देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का आना बना रहता है, लेकिन सबसे ज्यादा बिक्री श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर पोशाकों की होती है, जिसमें 100 से लेकर लाखों रूपए तक की पोशाक तैयार रहती है।
पोशाक उद्योग व्यापारी श्रीदास प्रजापति ने बताया कि वृंदावन में स्थानीय श्रद्धालु अपनी डिमांड के अनुसार आर्डर देते हैं, उसी के अनुसार पोशाक तैयार की जाती है। हमारे यहां अमेरिका, आस्टेलिया, न्यूजीलैंड, यूके, रूस एवं मैक्सिकों के अलावा कई देशों से हमें सालभर में आर्डर मिलते रहते है, लेकिन जन्माष्टमी पर यह डिमांड बढ़ जाती है, वहीं पोशाक-मुकुट विक्रेता मिश्रीलाल ने बताया कि करीब तीन चार साल से वृंदावन और मथुरा में बनी पोशाकों की डिमांड विदेशों में बढ़ी है, जिसके चलते आर्डर आने पर किसी भी हाल में ये आर्डर तैयार किए जाते है।
वहीं, मथुरा के अर्जुनपुरा स्थित कारखाने में कारीगर मजदूर कादिर ने बताया कि मुकुट में जरी, मोती, नग और खासतौर से शीशे का काम किया जाता है। जर्किन, शीशे वाला मुकुट ज्यादा खूबसूरत होता है क्योंकि इसकी लाइटिंग अधिक रहती है। शीशे का नग दिल्ली और मुंबई के बाजारों से खरीदा जाता है।
इसके अलावा गले के हार में छोटे व बारीक नग लगाया जाता है जो देखने में काफी सुंदर होता है। मुस्लिम समुदाय से जुड़े इमरान एवं शानू खांन ने बताया पोशाक बनाने से पूर्व हम डिमांड अनुसार कागज पर उसका डिजाइन स्केच करके के पाश्चात कारीगिरी करते हैं, पोशाक के लिए स्थानीय कपड़े का इस्तेमाल होता है, पोशोक में जरी, लाल मोती, स्टोन व मखमल आदि की कड़ाई की जाती है।
कारखाना मालिक ने बताया कि जन्माष्टमी पर्व से एक महीने पूर्व से यहां 12 घंटे काम होता है, तब जाकर पोशाक डिमांड पूरी होती है।
मुस्लिम इमरान अंसारी ने बताया कि पोशाक में लहंगा, ओढ़नी, पटुका के साथ मुकुट, श्रृंगार का निर्माण किया जाता है, जो हम सब भाई मिलकर करते है। इसी तरह वृंदावन में स्थित कारखानों में काम चलता है। 2019 में सर्वाधिक नीले और सफेद रंग की पोशाकों की डिमांड अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा, नेपाल, स्वीजरलैंड, अफ्रीका से आई है।