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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : कठिन मेहनत से बनाया अपना मुकाम और बन गई खेलों की दुनिया की सरताज ये बेटियां

 

कहते हैं जितना बड़ा संघर्ष होगा, सफलता उतनी ही शानदार होगी। स्वामी विवेकानंद के इस वाक्य को सच कर दिखाया है देश की उन बेटियों ने जो कभी सवा सौ करोड़ भारतीयों की तरह एक आम इंसान हुआ करती थीं। लेकिन उनके कठिन संघर्ष और जज़्बे ने उन्हें आज उस मुकाम पर काबिज कर दिया है जहां तक पहुंच पाना सब के बस की बात नहीं है। विश्व महिला दिवस के मौके पर आज हम देश की उन बेटियों के संघर्ष पर एक नज़र डालेंगे। जिन्होंने अपने खेल हुनर के बलबूतें फर्श से लेकर अर्श तक का सफर तय किया है।

भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल आज जिस मुकाम पर पहुंची हैं उसकी डगर बेहद ही मुश्किल भरी थी। अपने बलबुते हॉकी में अपना नाम चमकने वाली रानी रामपाल के पिता ने वो सब किया जो एक बाप अपनी बेटी के लिए कर सकता है। रानी को पांचवीं क्लास से ही हॉकी खेलने का शौक था। घोड़ा-गाड़ी चलाकर जिंदगी का गुजर बसर चलाने वाले रानी रामपाल के पिता ने अपना तन-पेट काटकर बेटी को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। रानी की माँ ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी बेटी इस मुकाम पर पहुंचेगी और देश व परिवार का नाम रोशन करेगी। रानी ने महिला हॉकी में कामयाबी का जो परचम लहराया है उसे आनेवाली पीढ़ी कभी नहीं भूल सकती।

 


हिमा दास का भी सफ़र काटों भरा था। उनकी इस सफलता के पीछे उनकी लगन, कड़ी मेहनत और हिम्मत का हाथ है। असम में धान की खेती करने वाले एक साधारण किसान की बेटी हिमा पहले तो लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थीं और मैदान पर अपनी फुर्ती और दमखम से उनको छका देती थी। तक़रीबन दो साल पहले रेसिंग ट्रैक पर कदम रखनेवाली हिमा के कोच निपोन ने उन्हें पहले फुटबॉल छोड़ रेसिंग में किस्मत अजमाने की सलाह दी थी। भारत की युवा सनसनी हिमा दास ने एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर तहलका मचा दिया। उसके बाद तो हिमा ने वो कारनामा कर दिखाया जिसकी चर्चा आज पूरा देश करता है।


भारत की आयरन लेडी के नाम से मशहूर मैरी कॉम आज जिस मुकाम पर काबिज हैं। वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने जी तोड़ मेहनत की है। मणिपुर के एक ग़रीब परिवार में जन्मी मैरी के घरवाले नहीं चाहते थे कि वो बॉक्सिंग में जाए। बचपन में घर का काम, खेत और अपने भाई बहन को संभालने के बीच वो बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करती। साल 2011 में एशिया कप के लिए अपने साढ़े तीन साल के बेटे के दिल का ऑपरेशन छोड़ देश के लिए चीन जाकर गोल्ड मेडल जीतने वाली मैरी के दिलेरी भरी निर्णय पर समूचे देशवासियों को फ़क्र है। मैरी छह बार विश्व चैम्पियन रह चुकी हैं और बॉक्सिंग में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। विश्व चैम्पियन मैरी ने अपने आखिरी दो विश्व चैम्पियनशिप मेडल और ओलंपिक पदक 35 साल की उम्र में मां बनने के बाद जीते थे।


आज भले ही गीता फोगाट देश की सफल महिला पहलवान हो। लेकिन इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्होंने बड़े संघर्ष किये हैं। जिस गांव में लड़कियों को स्कूल जाने तक की छूट न हो वहां कोई लड़की की पहलवानी की बात सोचना भी बेमानी साबित हो सकती है। गुड्डे-गुड़ियों से खेलने की उम्र में गीता को अपने पिता के संरक्षण में कठोर परिश्रम करना पड़ा। गीता की कुश्ती सीखने की बात से उनके पिता को गांव में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन महावीर सिंह फोगाट आलोचना की परवाह न करते हुए गीता को प्रशिक्षण देने लगे। वो अपनी बहन बबिता के साथ भोर में दौड़ने जातीं और जम कर कसरत करतीं। इसके बाद अखाड़े में भी घंटों प्रैक्टिस करनी पड़ती थी। साल 2012 में गीता ने एशियन ओलंपिक टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। उनकी इस कामयाबी पर ही फिल्म दंगल का निर्माण हुआ, जिसने देश ही नहीं विदेशों में भी सफलता के झंडे गाड़े।