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पितृपक्ष:ऐसे करें पिंडदान और जानिए तर्पण का महत्व

धर्म नगरी वाराणसी में गुरूवार को पितृ पक्ष की तैयारियां जोर-शोर से चलती रहीं.

गंगा घाटों के साथ-साथ विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर भी तीर्थ पुरोहितों की अगुवाई में साफ-सफाई, श्रद्धालुओं के बैठने के लिए टेंट लगाने के कार्य को अन्तिम रूप दिया गया.

उधर, गंगा तट पर श्राद्ध कराने वाले पुरोहित अपनी चौकियां लगाने में जुट गए. तिल, जौ, अक्षत, पुरवा और कुशासनी का बाजार भी सजने लगा है.

इस बार पितृ पक्ष की ​तिथि को लेकर भी पंचाग में भेद है. कुछ में 13 सितम्बर तो कुछ में 14 सितम्बर से पितृ पक्ष की शुरूआत है. हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में अपने पितरों को याद किया जाता है.

इन दिनों में पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण आदि शुभ कर्म किए जाते हैं. द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि पितृपक्ष का मान प्रतिपदा से अमावस्या तक है.

पितृ पक्ष की शुरूआत 14 सितम्बर से हो रही है. पितृ पक्ष का समापन 28 सितंबर को होगा. इस बार दशमी और एकादशी तिथि का श्राद्ध एक ही दिन होगा. पितृ पक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का पावन अवसर है.

श्राद्ध के दिन एक समय भोजन, भूमि शयन व ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक है. इन दिनों में पान खाना, तेल लगाना, धूम्रपान आदि वर्जित है. इसके अतिरिक्त भोजन में उड़द, मसूर, चना, अरहर, गाजर, लौकी, बैगन, प्याज और लहसुन का निषेध है.

पितृ पक्ष की धार्मिक मान्यता
सनातन धर्म में मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर देवता पृथ्वी लोक का भ्रमण करते हैं. इन दिनों में गया, हरिद्वार, उज्जैन, इलाहाबाद जैसे धार्मिक स्थलों पर पिंडदान किया जाता है.

इन धर्म स्थलों पर तर्पण करने से पितृ देवता तृप्त होते हैं. दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है. पिंडदान और तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. जिस तिथि पर परिवार के व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उसी तिथि पर उस व्यक्ति के लिए श्राद्ध कर्म करना चाहिए.

ऐसे करें श्राद्ध
पितृ पक्ष में रोज सुबह जल्दी उठना चाहिए. स्नान के बाद श्राद्ध कर्म के लिए भोजन बनाना चाहिए. इन 15 दिनों में लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए.

पितरों के निमित्त सभी क्रियाएं जनेऊ दाएं कंधे पर रखकर और दक्षिनाभिमुख होकर की जाती है. तर्पण काले तिल मिश्रित जल से किया जाता है.

श्राद्ध का भोजन, दूध, चावल, शक्कर और घी से बने पदार्थ का होता है. कुश के आसन पर बैठकर कुत्ता और कौवे के लिए भोजन निकाल पितरों का स्मरण किया जाता हैं.

पितृ पक्ष में हर दिन सुबह और शाम को जब भी घर पर रोटी बने पहली रोटी गाय को निकालकर अलग कर देना चाहिए. एक रोटी गाय को और एक रोटी कुत्ते को खिलाने से पितृदोषों से मुक्ति मिल जाती है.

पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध
जिनके पितरों या परिजनों की अकाल मृत्यु हुई हो, उनकी आत्मा की शांति और परिजनो के भय बाधा को दूर करने के लिए पितृ पक्ष में त्रिपिण्डी श्राद्ध किया जाता है.

पिशाचमोचन कुंड के ब्रम्हबाबा घाट के कर्मकांडी विद्यान मुन्ना लाल पांडेय ने बताया कि अनादि काल से भगवान भूत भावन की नगरी काशी के इस कुंड पर अशांत आत्माओं को तृप्त करने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध की परंपरा रही है. मान्यता है कि पितरों को प्रेत बाधा और व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है.