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अयोध्या मामला : मुस्लिम पक्ष का यू-टर्न, बोला-राम चबूतरे को कभी नहीं माना जन्मस्थान

 

नई दिल्ली। राम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को 31वें दिन की सुनवाई पूरी हो गई। मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील जफरयाब जिलानी ने अपनी दलीलें पेश कीं। उसके बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से मीनाक्षी अरोड़ा ने दलीलें दीं। मुस्लिम पक्ष ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की रिपोर्ट को अविश्वसनीय बताया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि ये आपत्ति हाईकोर्ट में क्यों नहीं दर्ज कराई गईं। अब क्यों कराई जा रही है। आपकी आपत्तियां जायज नहीं हैं।

राम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच कर रही है। बेंच के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।

जिलानी ने कहा कि कल हमने यह नहीं कहा कि राम चबूतरा जन्मस्थान है। हमने कहा था कि 1885 में फैजाबाद कोर्ट के जज ने कहा था कि राम चबूतरा भगवान राम का जन्मस्थान है। हमने उस फैसले को कभी चुनौती नहीं दी।
जिलानी ने कहा कि हमने कभी अपनी ओर से नहीं कहा कि राम चबूतरा जन्मस्थान है। जीलानी ने कुछ दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए कहा कि उस समय में किसी की भी यह आस्था नहीं थी कि गर्भ गृह राम का जन्मस्थान है, लोग बस राम चबूतरे की पूजा करने जाते थे।
जिलानी ने कहा कि 1858 के दस्तावेज हैं जिसमें स्पष्ट है कि इनर कोर्टयार्ड यानी मस्जिद के भीतर के भाग पर हिन्दुओं ने कोई दावा नहीं किया, गजेटियर रिपोर्ट लोगों के विश्वास का समर्थन नहीं करती, जिसके तहत हिन्दू मानते हैं कि विवादित स्थल पर मंदिर था। 1858 से पहले का कोई भी दस्तावेज भरोसेमंद नहीं है। कुछ यात्रियों की कही बातों पर कोर्ट कैसे विश्वास कर सकता है। जब कोई आधिकारिक दस्तवेज़ नहीं उपलब्ध है। कार्नेगी ने अयोध्या पर दस्तावेज को नकार दिया था, जिसमें कहा गया था कि लोग मस्जिद के गर्भ गृह में पूजा करते थे। जिलानी ने कहा कि दस्तावेजों से साफ है कि हिन्दुओं के विश्वास से जुड़ा मसला 1528 से सिविल सूट दाखिल किए जाने तक नहीं था, मस्जिद से बीच वाले डोम (गुम्बद) में जन्मस्थान का जिक्र किसी दस्तावेज में नहीं है और यहां पहले पूजा भी नहीं कि जाती थी। तब जस्टिस बोबडे ने कहा कि मस्जिद बनने के बाद तो हिन्दुओं को प्रवेश नहीं करने दिया गया होगा। क्या सिविल सूट में कोई साक्ष्य है जिसमें हिन्दुओं ने पूजा की मांग की हो। जिलानी ने कहा कि 1865 में पहली बार मांग की गई थी जो इतिहास की किताबों में है। जिलानी ने कहा कि पहली बार सिख धर्म के अनुयाइयों ने 1858 में मस्जिद में पताका फहराया था, लेकिन वो राम की पूजा नहीं करते। जस्टिस बोबडे ने कहा कि बड़े पैमाने पर सिख भगवान राम की पूजा करते हैं।

जिलानी के बाद मुस्लिम पक्ष की तरफ से मीनाक्षी अरोड़ा ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की रिपोर्ट पर जिरह शुरू की। मीनाक्षी अरोड़ा ने एएसआई की रिपोर्ट पर कहा कि पुरातत्व विज्ञान, भौतिकी और रसायन की तरह विज्ञान नहीं है। यह एक सामाजिक विज्ञान है। इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। अरोड़ा ने कहा कि पुरातत्व की रिपोर्ट में यह सामने नहीं आया है कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनायी गई, जो हिन्दू पक्षकारों का दावा है। इसी दावे के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया।
अरोड़ा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निचली अदालत ने ही कमिश्नर की नियुक्ति की थी। एएसआई को आदेश दिया था अगर आपको उसकी रिपोर्ट पर कोई सवाल या संशय था तो उस समय ही आपको इस मुद्दे को उठाना चाहिए था। हमने उस समय यह मुद्दा उठाया था लेकिन कोर्ट ने इसको खारिज कर दिया था। तब जस्टिस बोबडे ने कहा कि क्या यह सही समय है इस मुद्दे को उठाने का। तब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि एएसआई रिपोर्ट की असली कॉपी कहां है? मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि इस बारे में ज़फरयाब जिलानी बताएंगे। जिलानी ने कहा कि वह रिपोर्ट सीलबंद करके इलाहाबाद हाईकोर्ट को दी गई थी। मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि बीआर मणि की जगह हरिमान जी को शामिल किया गया था क्योंकि मणि को कहीं जाना था। हर पैनलिस्ट को अपनी रिपोर्ट लिखनी थी तो चैप्टर 10 पर दस्तख़त क्यों नहीं है, जबकि सभी चैप्टर पर दस्तख़त होना चाहिए था। तब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि आपकी 10वें चैप्टर पर दस्तख़त न होने की आपत्ति को हम संज्ञान में लेते हैं और देखेंगे कि इसके साथ कोई फॉरवर्डेड रिपोर्ट थी या नहीं।
अरोड़ा ने कहा कि कई परतों में पुरातत्व विभाग ने रिपोर्ट में कहा कि मिट्टी का अलग रंग है। इसमें ईंटों के कड़े मिले और तब ईंटों का प्रयोग मुस्लिमों द्वारा किया जाता था जो आंध्र की परंपरा में शामिल है। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि पूरा विस्तार से स्पष्ट करिए। अरोड़ा ने कहा कि देश में हर जगह जहां विध्वंस है, उसके नीचे कुछ ना कुछ मिलेगा। जस्टिस बोबडे ने कहा कि हम सिर्फ इस बात को जानना चाहते हैं कि नीचे मंदिर था या नहीं। अरोड़ा ने कहा कि सिर्फ दीवार और पिलर के आधार पर इसे मंदिर नहीं कहा जा सकता। उस जगह पर ईदगाह के साक्ष्य भी हो सकते हैं। तब चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की रिपोर्ट कोर्ट कमिश्नर के तौर पर प्रक्रिया के अनुरूप थी। आपकी कोई आपत्तियां जायज नहीं हैं, क्योंकि पहली अपील में आपने आपत्ति नहीं जताई। तब अरोड़ा ने कहा कि हाईकोर्ट के एक जज का फैसला एएसआई रिपोर्ट के आधार पर है जिसके मद्देनजर मैं रिपोर्ट की हकीकत बयान कर रही हूं कि मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों को नजरअंदाज किया गया। ऐसे में हम कैसे एएसआई की रिपोर्ट पर भरोसा कर सकते हैं।