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नहीं असफल हुआ भारत का मिशन चंद्रयान-2, इसलिए है अमेरिका और रूस जैसे देशों से खास और अलग

नई दिल्ली। भले ही चंद्रयान-2 का अंतिम समय पर भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो से संपर्क टूट गया हो और वह सही तरह से चांद के दक्षिणी सतह पर न लैंड कर पाया हो लेकिन इसके बावजूद इसरो ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। इसरो के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत फ्लॉप नहीं हुई है और ऐसा कहने के पीछे कई वजह हैं।

दरअसल लैंडर का कंट्रोल टूट जाने के बाद भी इसरो का यह मिशन एक साल तक चलता रहेगा। क्योंकि चंद्रमा की सतह से दूर चंद्रयान 2 का ऑर्बिटर लगातार काम कर रहा है, भले ही चंद्रयान 2 के लैंडर और रोवर से इसरो का कंट्रोल टूट चुका हो। इसरो के वैज्ञानिकों को चांद के बारे में जानकारी लगातार मिलती रहेगी। क्योंकि ऑर्बिटर के जरिए चंद्रमा के फोटोग्राफ्स हमें मिलते रहेंगे।

मिशन चंद्रयान 2 के जरिए भारत ने क्या-क्या उपलब्धि हासिल की

मिशन चंद्रयान 2 को असफल नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि भारत कामयाबी से चंद्रयान 2 का प्रक्षेपण कर सका है और प्रक्षेपण को अंजाम देने वाला विशालकाय जीएसएलवी मार्क 3 रॉकेट यान को कामयाबी से चंद्रमा के ऑर्बिटर में पहुंचा सका। जो कि एक बड़ी उपलब्धि है। जीएसएलवी मार्क 3 एक विशालकाय रॉकेट था, जिसे बाहुबली नाम दिया गया था।

इसके सफल प्रक्षेपण के जरिए वैज्ञानिकों की आगे की राह आसान हुई और उन्हें आगे सफल लैंडिंग का भरोसा हुआ। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत के मिशन को आसान शब्दों में समझने के लिए आप कल्पना कीजिए कि किसी चलती ट्रेन से दूसरी चलती ट्रेन के टारगेट पर निशाना लगाना था, जो कि कई हजार किलोमीटर दूर हो।

यही नहीं इसके साथ ही चंद्रयान 2 इसलिए भी कामयाब मिशन है, क्योंकि दुनिया के बड़े-बड़े अमेरिका और रूस जैसे देश जहां इस मिशन में लाखों करोड़ रुपए फूंक चुके हैं। तो वहीं भारत सबसे किफायती तरीके से इस मिशन को अंजाम देने वाला एकमात्र देश बन चुका है। भले ही चंद्रयान 2 की सफल लैंडिंग न हो सकी हो लेकिन चांद की सतह से मात्र 2.1 किलोमीटर दूर तक इसरो ने चंद्रयान 2 को पहुंचाया और मिशन को 95 फीसदी पूरा किया। भारत के चंद्रयान 2 मिशन को पूरा करने में मात्र 1000 करोड़ रुपए का खर्च आया था। यही नहीं इसरो इससे पहले मंगल मिशन को भी सबसे किफायती तरीके सफलतापूर्वक अंजाम दे चुकी है।

यह मिशन इसलिए भी असफल नहीं है, क्योंकि हो सकता है कि ऑर्बिटर के जरिए वैज्ञानिक लैंडर विक्रम की भी जानकारी हासिल कर सकें। ऑर्बिटर लैंडर विक्रम को ढूंढ निकाले और उसके फोटोग्राफ्स धरती पर बेजे। अगर ऐसा होता है, तो वैज्ञानिकों को संपर्क टूटने की असली वजह का पता लग जाएगा।