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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी मजबूत विदेश नीति के लिए अकसर याद किया जाता रहा है। यहां तक कि वह मित्र देशों से भी भारत की शर्तों पर ही संबंध रखने की पक्षधर थीं। भारत और तत्कालीन सोवियत यूनियन के बीच हुए शांति समझौते के 50 साल पूरे होने के मौके पर इंदिरा गांधी से जुड़ा एक ऐसा ही किस्सा पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने साझा किया है। जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक ‘Intertwined Lives: P.N. Haksar and Indira Gandhi’ के हवाले से बताया है कि कैसे इंदिरा गांधी ने सोवियत यूनियन के विदेश मंत्री को अपनी शर्तें मानने के लिए मजबूर कर दिया था।
दरअसल अगस्त 1971 में हुए इस शांति समझौते के लिए सोवियत के विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रॉमिको भारत से लौटते वक्त पाकिस्तान होकर जाना चाहते थे। लेकिन इंदिरा गांधी को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने सोवियत को सख्त संदेश दिया कि यदि भारत से लौटते समय पाकिस्तान जाना है तो फिर आने की ही जरूरत नहीं है। उनके इस संदेश का असर था कि आंद्रेई भारत और समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए, लेकिन वह पाकिस्तान गए बिना ही सीधे मॉस्को निकल गए। जयराम रमेश ने इंदिरा गांधी पर लिखी अपनी पुस्तक में इसका जिक्र किया है।
The Soviet Foreign Minister Andrei Gromyko initially planned to return to Moscow via Pakistan after signing the Treaty. Indira Gandhi asked a message to be conveyed to him that in that case he needn’t bother to come. Gromyko came, signed and returned to Moscow directly. (2/3)
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 9, 2021
इंदिरा गांधी और नौकरशाह पीएन हासकर पर जयराम रमेश की यह पुस्तक 2018 में आई थी। कहा जाता है कि रूस के साथ हुए इस शांति समझौते के चलते भारत को 1971 के ही आखिरी में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान से हुई जंग में बड़ी मदद मिली थी। इस युद्ध को और रूस के साथ हुए समझौते को इस साल 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं। गौरतलब है कि सोवियत यूनियन के साथ भारत के नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक के दौर में अच्छे संबंध रहे हैं। इसका दौर अब भी जारी है और एक बार फिर से अफगानिस्तान में रूस की अगुवाई में भारत को अहम भूमिका मिल सकती है।
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