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द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन के तौर-तरीकों में क्या आ सकते हैं बदलाव

द्रौपदी मुर्मू भारत की प्राचीन जनजाति संथाल से आती हैं। संथाल समाज मूल रूप से झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में बसा है। आबादी के तौर पर देखे तो ये झारखंड की सबसे बड़ी जनजाति है। आइए आपको बताते हैं कि द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन के तौर-तरीकों में क्या बदलाव आ सकते हैं। इसको लेकर वुमन भास्कर ने स्नेहा मुर्मू से बात की है और उनके रहन-सहन, तौर-तरीके और खान-पान के बारे में जाना है। संथालों के लोक कथाओं में इस बात का दावा किया जाता है कि यह हिहिरी से आए थे, जिसे बाद उन्हें हजारीबाग जिले के अहुरी के रूप में पहचाना गया। एक समय में ये घना जंगला हुआ करता था। अहुरी से ये छोटा नागपुर, झालदा, पटकुम और फिर साउंट तक फैलते गए।

जो लोग संथाली भाषा बोलते हैं। वुमन भास्कर से बात करते हुए स्नेहा मुर्मू बताती हैं कि संथाली ज्यादातर हैंडलूम (नेचुरल तरीके से बने कपड़े) से बने कपड़े पहनते है। लड़के कांचा (धोती) पहनते हैं। वहीं लड़किया कॉटन जैसे मटेरियल से बनी साड़ी पहनती हैं, जिसे झल या फुटा साड़ी बोलते हैं। हालांकि, कुछ लोगों के शहरों में सेटल होने के बाद उनके पहनावे में अंतर आया है, लेकिन आज भी किसी भी शादी या त्योहार में अपने पारंपरिक कपड़ों को ही महत्व देते हैं। पहले के समय में संथाली महिलाएं मिट्टी से ज्वेलरी बनाकर पहनती थीं, जिसे वो खुद बनाती थीं। मगर, धीरे-धीरे महिलाओं ने चांदी की ज्वेलरी (रुपा) पहनना शुरू किया। संथाली भाषा में चूरी, ईयररिंग्स सबके अलग-अलग नाम होते हैं। आदिवासी समाज के ज्यादातर घरों के दीवारों पर कुछ डिजाइन बनाए जाते थे, जिसे पुराने समय में इसे घर को सजाने के लिए बनाया जाता था। साल में एक बार या मकर संक्रांति या फिर दीवाली में घर के दीवारों पर कुछ डिजाइन बनाए जाते हैं। इस डिजाइन के पैटर्न इंटरनेट या किताबों में मिलना मुश्किल है। ये संथाली महिलाओं की खुद की क्रिएटिविटी होती है या फिर वो बचपन से अपने घर मे सीखती हैं।