धर्म डेस्क|
वैशाख के कृष्णपक्ष की एकादशी को वरुथिनी के नाम से जाना जाता है ऐसा पद्मपुराण में वर्णित है। इस एकादशी को इस लोक और परलोक में सौभाग्य प्रदान करने वाली मानी जाएगी। वरुथिनी एकादशी के व्रत से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है.
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इस व्रत में भगवान विष्णु के वाराह अवतार का पूजन किया जाता है। इस व्रत के नियम बेहद कठोर हैं और इसका नियमतः पालन करने से मनुष्य को मनवांछित फल की प्राप्ति भी होती है.ध्यान रहे इस दिन जुआ खेलना, सोना, पान खाना, दातून करना, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा असत्य भाषण- इन ग्यारह बातों का परित्याग करना चाहिये।
शुभ मुहूर्त:
- एकादशी आरंभ- 29 अप्रैल रात 11 बजकर 4 मिनट से
- एकादशी तिथि समाप्त: 1 मई 12:18 तक
- पारण का समय: 1 मई 2019 को शाम 06:44 से 08:22 बजे तक
एकादशी व्रत के नियम:
इस दिन व्रत रखने वाले लोगों को कठोर नियमों का पालन करना चाहिये। उपवास रखने वालों को इस दिन मांस, मसूर की दाल, चना, करौंदे, शाक, शहद नहीं नहीं खाना चाहिए। कांसे के बर्तन, मांगकर और दूसरी बार भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
एकादशी व्रत का महत्व
इस दिन व्रत करने वालों को दस हजार वर्षो तक की तपस्या का फल प्राप्त होता है। यही नहीं उसे सिर्फ लोक में ही नहीं बल्कि परलोक में भी सुख की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल का दान करना श्रेष्ठ दान माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार कन्यादान को भी अन्न दान के बराबर माना जाता है।