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झारखण्ड के इस मंदिर में होती है कुत्ते की पूजा,अद्भुत है इसकी कहानी

कुत्ते की वफादारी से भला कौन वाकिफ नहीं होगा…लेकिन क्या एक कुत्ता आस्था का केन्द्र बिन्दु हो सकता है ? यह सुनकर कोई भी सोच में पड़ जायेगा। शायद ऐसा आपने पहली बार सुना होगा कि कुत्ता देवतुल्य मानकर पूजा जाये। सच में यह अविश्वसनीय सा लगता है। लेकिन ऐसा सच है।

रहस्य और आश्चर्य में डूबी आस्था की ऐसी ही एक चौंका देने वाली तस्वीर दिखाने आज हम आपको लेकर चलते हैं झारखण्ड राज्य की राजधानी रांची.रांची में हमारी मंज़िल थी चहल पहल से थोड़ी दूर स्थित कोकर में मुक्तेश्वर धाम श्री श्री पागल बाबा आश्रम।

श्री श्री पागल बाबा आश्रम में हमें श्रद्धालुओं के बीच कई कुत्ते भी दिखाई दिए। हालाँकि कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि आस पास के कुत्ते यहाँ खाने पीने की चीज़ों की तलाश में घूम रहे हो सकते थे। लेकिन इस बीच हमारे सामने जो कहानी खुलकर आयी, उस पर विश्वास करना थोड़ा कठिन था।

रांची के पागल बाबा की कहानी है अद्भुत

आस्था से जुड़ी यह अनोखी कहानी रांची के कोकर स्थित पागल बाबा आश्रम की है…जहाँ शिवमंदिर भी है और मां दुर्गा की भी पूजा होती है लेकिन इन सबके पहले पूजा होती है भोली नामक उस कुत्ते की, जिसकी प्रतिमा मंदिर में स्थापित है।

यहाँ हमें पता चला कि भोली की एक कहानी भी है जो दिल को झकझोर कर रख देती है, और सभी को मंदिर की ओर खींच लाती है…कहते हैं कि आज से दो दशक पहले इसी आश्रम में पागल बाबा ने भोली नाम का एक कुत्ता पाल रखा था…पागल बाबा भोली से इतना लगाव रखते थे कि ख़ुद भोजन करने से पहले भोली को श्रद्धापूर्वक खाना खिलाते थे…

कहा जाता है कि वर्ष 1999 में पागलबाबा अयोध्या यात्रा पर गये थे…इसी दौरान आश्रम में पल रहे भोली कुत्ते ने एक दिन जब भोजन के लिए भौंकना शुरू किया, तब आश्रम के खानसामा ने गुस्से में आकर चूल्हे की जलती लकड़ी से कुत्ते के सिर पर वार कर दिया, जिससे कुत्ते की मौत हो गयी …

जब पागलबाबा को इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने नाराज होकर खानसामा को आश्रम से निकाल दिया और फिर कुत्ते की समाधि मंदिर के बगल में ही बनवा डाली और रोज पूजा भी करने लगे…कहते हैं कि बाद में कुत्ते की हत्या करने के सात दिन बाद ही खानसामा की भी मौत हो गयी थी…पागलबाबा एक चमत्कारिक औघड़ थे…कहा जाता है कि पागलबाबा इंसानों के ना सिर्फ वर्तमान और भूत बताते थे बल्कि उनकी भविष्यवाणियां भी सटीक होती थी.

शुरू हुई कुत्ते की पूजा की परंपरा

पागलबाबा द्वारा कुत्ते की पूजा करने की जो परंपरा शुरू हुई, उसे बाबा के अनुयायियों ने आगे बढ़ाया। पागल बाबा आश्रम में देवी – देवताओं से पहले कुत्ते की समाधि की पूजा होने लगी…कहते हैं इस आश्रम में कुत्ते की आत्मा अभी भी बसती है…तभी तो इस आश्रम में एक दो नहीं बल्कि 17 कुत्ते पलते हैं…इस आश्रम में आने वाले लोग रोजाना कुत्ते को कुछ ना कुछ भोजन जरूर देते हैं…श्रद्धा की यह अद्भुत यात्रा यही आकर नहीं रूकती…जानकार बताते है कि कुत्ते की इस समाधि की पूजा करने से मनौती पूरी होती है…

हमने कुत्ते की समाधि पर फूल चढाने की परंपरा और शास्त्र में कुत्ते की पूजा की जानकारी ली तो पता चला कि उज्जैन नगरी में प्रसिद्द महाकाल मंदिर में भी एक कुत्ते की पूजा होती है जिसे भैरोनाथ के नाम से जाना जाता है…शास्त्र में कुत्ता यम का दूत कहा गया है…यानी पृथ्वीलोक पर अपनी यात्रा से पहले यमराज पृथ्वीलोक की पूरी जानकारी कुत्ते से ही प्राप्त करते हैं…साथ ही कुत्ता मां दुर्गा का द्वारपाल भी कहा जाता है।

रांची के कोकर में श्री श्री पागल बाबा आश्रम में कुत्ते की समाधि आस्था और विश्वास का बरसों से केंद्र बनी हुई है। अब कोई तर्क-वितर्क के माध्यम से इस पर जो भी सवाल उठाये, किन्तु आश्रम आने वाले तमाम श्रद्धालुओं की आस्था के आगे सब बेमानी लगता है।