Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

यहां परंपरा के नाम पर गायों के पैरों तले रौंदाया जाता है सूअर, वध होते ही खेली जाती है लट्ठमार दीपावली

 

 

हमीरपुर। हमीरपुर समेत बुन्देलखण्ड क्षेत्र में सूअर वध के साथ लट्ठमार दिवाली खेलने की परम्परा कायम है। क्षेत्र के हर जिले के ग्रामीण और शहरी इलाकों में परेवा के दिन इस परम्परा की दिवाली की धूम मचती है। इसके लिये दिवाली खेलने वालों ने तैयारी शुरू कर दी हैं।

दीपावली के पर्व को जहां प्रकाश पर्व के रूप में मनाये जाने की परम्परा हैं वहीं वीरभूमि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सभी जनपदों में दिवाली के अगले दिन परेवा को सूअर वध के साथ दिवाली खेलने की प्रथा कायम हैं। ये परम्परा हजारों साल पुरानी हैं जिसमें तमाम इलाकों में सूअर को रस्सी से बांधकर गायों के पैरों तले फेंका जाता हैं। गायें दिवाली के ढोल बजने पर सूअर को सींग से मारते हुये मैदान से निकलने की कोशिश करती हैं मगर गायें भी रस्सी से बांधकर दिवाली नृत्य स्थल पर लायी जाती हैं।

 

इस तरह की परम्परा की दिवाली देखने के लिये लोगों की भारी भीड़ भी उमड़ती हैं। शहरी इलाकों में इस तरह की दिवाली दोपहर के समय होती हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में दिवाली नृत्य की टोलियां शाम को सूअर वध के साथ लट्ठमार दिवाली खेलते हैं। दीनदयाल ने बताया कि सूअर वध गाये अपनी सींग से करती हैं। ये खेल तब तक चलता है जब तक सूअर का काम तमाम नहीं हो जाता हैं। यदि दिवाली के दौरान गायों के रौंदने के बाद भी सूअर बच जाता हैं तो उसे बाद में छोड़ दिया जाता हैं। सूअर वध के साथ दिवाली खेलने वाले पूरी रात ढोल बजाते हुये नगर का भ्रमण भी करते हैं। हमीरपुर जिले के मौदहा, सुमेरपुर के अलावा पड़ोसी जनपद के बीबीपुर गांव में भी इस तरह की परम्परा की दिवाली की धूम मचेगी। इसके लिये तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं।