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‘संसद की शेरनी’ सुषमा स्वराज ने मनमोहन सिंह को ये शेर पढ़कर दिया था जोरदार जवाब

 

नई दिल्ली। एक प्रखर वक्ता और तेज तर्रार राजनेता के तौर पर सुषमा स्वराज के भाषण भी हमेशा चर्चा में रहे। लोकसभा या राज्यसभा में विरोधी पक्ष को जवाब देने में उनकी वाकपटुता ऐसी थी कि सुषमा स्वराज को ‘संसद की शेरनी’ भी कहा जाता था।  संसद के दोनों सदनों में उनके धारदार और तार्किक भाषण विरोधियों को भी उनका मुरीद बना देते थे।  सुषमा स्वराज के लंबे राजनीतिक जीवन के बहुत से ऐसे किस्से हैं जिन्हें लोग याद कर रहे हैं। एक ऐसा ही अवसर तब देखने को मिला जब शेर और शायरी के माध्यम से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ उनकी जुगलबंदी संसद में हुई थी। 

दरअसल, यह 2013 की बात है जब सुषमा स्वराज लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं, उस समय सदन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए शेर पढ़ा, ‘हमें है उनसे वफा की उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है। ‘ इसके बाद सुषमा स्वराज ने दो शेर पढ़कर मनमोहन सिंह को जवाब दिया। 

सुषमा स्वराज ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को मुखातिब होते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की एक शायरी का जवाब वे दो शेरों से देंगी।  अपने पहले शेर में उन्होंने कहा, ‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। ‘ सुषमा स्वराज ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री जी देश के साथ बेवफाई कर रहे हैं। 

इसके बाद उन्होंने दूसरा शेर पढ़ा, ‘तुम्हें वफा याद नहीं हमें जफा याद नहीं, जिंदगी और मौत के दो ही तराने हैं एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं। ‘ सुषमा स्वराज के इस शेर के बाद पूरे सदन का माहौल हल्का हो गया और संसद सदस्य हंस पड़े थे। 

 

प्रारंभिक जीवन

सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा (तब पंजाब) राज्य की अम्बाला छावनी में श्री हरदेव शर्मा तथा श्रीमती लक्ष्मी देवी के घर हुआ था। उनके पिता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख सदस्य रहे थे। स्वराज का परिवार मूल रूप से लाहौर के धरमपुरा क्षेत्र का निवासी था, जो अब पाकिस्तान में है। उन्होंने अम्बाला के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत तथा राजनीति विज्ञान में स्नातक किया।

1970 में उन्हें अपने कालेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा के सम्मान से सम्मानित किया गया था। वे तीन साल तक लगातार एसडी कालेज छावनी की एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और तीन साल तक राज्य की श्रेष्ठ वक्ता भी चुनी गईं। इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से कानून की शिक्षा प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय से भी उन्हें 1973 में सर्वोच्च वक्ता का सम्मान मिला था।

1973 में ही सुषमा स्वराज भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के पद पर कार्य करने लगी। 13 जुलाई 1975 को उनका विवाह स्वराज कौशल के साथ हुआ जो सर्वोच्च न्यायलय में उनके सहकर्मी और साथी अधिवक्ता थे। कौशल बाद में छह साल तक राज्यसभा में सांसद रहे, और इसके अतिरिक्त वे मिजोरम प्रदेश के राज्यपाल भी रह चुके हैं। स्वराज दम्पत्ति की एक पुत्री बांसुरी है जो लंदन के इनर टेम्पल में वकालत कर रही हैं। 67 साल की आयु में 6 अगस्त, 2019 की रात 11.24 बजे के करीब सुषमा स्वराज का दिल्ली एम्स में निधन हो गया।

राजनीतिक जीवन

सुषमा स्वराज 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गयी थी। उनके पति स्वराज कौशल, सोशलिस्ट नेता जॉर्ज फ़र्नान्डिस के करीबी थे, और इस कारण ही वे भी 1975 में फ़र्नान्डिस की विधिक टीम का हिस्सा बन गयी। आपातकाल के समय उन्होंने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल की समाप्ति के बाद वह जनता पार्टी की सदस्य बन गयी।

1977 में उन्होंने अम्बाला छावनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक का चुनाव जीता और चौौधरी देवीलाल की सरकार में से 1077 से 79 के बीच राज्य की श्रम मन्त्री रह कर 25 साल की उम्र में कैबिनेट मन्त्री बनने का रिकार्ड बनाया था। 1979 में 27 वर्ष की स्वराज हरियाणा राज्य में जनता पार्टी की राज्य अध्यक्ष बनी।

सन 80 के दशक में वह भारतीय जनता पार्टी का गठन होने पर वह भी इसमें शामिल हो गयी। इसके बाद 1987 से 1990 तक पुनः वह अम्बाला छावनी से विधायक रही और भाजपा-लोकदल संयुक्त सरकार में शिक्षा मंत्री रही। अप्रैल 1990 में उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया, जहाँ वह 1996 तक रही। 1996 में उन्होंने दक्षिण दिल्ली से चुनाव जीता और 13 दिन की वाजपेयी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री रही। मार्च 1998 में उन्होंने दक्षिण दिल्ली संसदीय क्षेत्र से एक बार फिर चुनाव जीता। इस बार फिर से उन्होंने वाजपेयी सरकार में दूरसंचार मंत्रालय के अतिरिक्त प्रभार के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में शपथ ली थी।

19 मार्च 1998 से 12 अक्टूबर 1998 तक वह इस पद पर रही। इस अवधि के दौरान उनका सबसे उल्लेखनीय निर्णय फिल्म उद्योग को एक उद्योग के रूप में घोषित करना था, जिससे कि भारतीय फिल्म उद्योग को भी बैंक से क़र्ज़ मिल सकता था। अक्टूबर 1998 में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और 12 अक्टूबर 1998 को दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। हालांकि, 3 दिसंबर 1998 को उन्होंने अपनी विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और राष्ट्रीय राजनीति में वापस लौट आई।

सितंबर 1999 में उन्होंने कर्नाटक के बेल्लारी निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध चुनाव लड़ा। अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने स्थानीय कन्नड़ भाषा में ही सार्वजनिक बैठकों को संबोधित किया था लेकिन वह चुनाव हार गयी। अप्रैल 2000 में वह उत्तर प्रदेश के राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद में वापस लौट आईं। 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश के विभाजन पर उन्हें उत्तराखंड में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फिर से सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में शामिल किया गया और वह इस पद पर सितंबर 2000 से जनवरी 2003 तक रही।

2003 में उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों में मंत्री बनाया गया और मई 2004 में राजग की हार तक वह केंद्रीय मंत्री रही। अप्रैल 2006 में स्वराज को मध्यप्रदेश राज्य से राज्यसभा में तीसरे कार्यकाल के लिए फिर से निर्वाचित किया गया। इसके बाद 2009 में उन्होंने मध्य प्रदेश के विदिशा से 4 लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की। 21 दिसंबर 2009 को लाल कृृष्ण आडवाणी की जगह 15वीं लोकसभा में सुषमा स्वराज विपक्ष की नेता बनी और मई 2014 में भाजपा की विजय तक वह इसी पद पर आसीन रही।

वर्ष 2014 में वे विदिशा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से दोबारा सांसद निर्वाचित हुई और उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। भाजपा में राष्ट्रीय मन्त्री बनने वाली पहली महिला का रिकॉर्ड भी सुषमा के नाम पर दर्ज़ हैं। वे भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता बनने वाली पहली महिला हैं।.वे कैबिनेट मन्त्री बनने वाली भी भाजपा की पहली महिला हैं। वे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमन्त्री थीं और भारत की संसद में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार पाने वाली पहली महिला भी वे ही हैं।