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जानिए आखिर क्यों की जाती है विजय दसमी पर शास्त्रों की पूजा, ये है पौराणिक कथा

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला दशहरा पर्व स्वयं में कई विशेषताओं को समेटे है। अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मनाए जाने वाले इस पावन पर्व का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।

इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का और मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध भी किया था। विजय के प्रतीके के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व पर शस्त्रों के पूजन का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन जिस काम की शुरूआत की जाती है वह शुभ फलदायक होता है।  

इसलिए की जाती है शस्त्रों की पूजा

मालूम हो कि हमारे देश में शस्त्र और शास्त्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्नति और जीवन जीने के लिए शास्त्र जिस प्रकार आवश्यक हैं उसी प्रकार शास्त्रों और आत्मरक्षा के शस्त्रों की आवश्यकता होती है। आदि काल से धर्मसम्मत तरीके से शस्त्रों का पूजन होता चला आ रहा है। प्राचीन काल में शत्रुओं पर विजय की कामना के साथ युद्ध के लिए इसी दिन का चुनाव करते थे। इस परम्परा का अनुपालन आज भी होता आ रहा है। दशहरा के दिन शासकीय शस्त्रागारों में भी पूजा अर्चना की जाती है।

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वर्ष के सबसे पवित्र साढ़े तीन मुहूर्त में शामिल है दशहरा

शास्त्रों के अनुसार वर्ष ने सबसे शुभ और पवित्र साढ़े तीन मुहूर्त होते हैं। जिनमें चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी, वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया के अलावा कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (आधा मुहूर्त) शामिल हैं। 

ऐसे करें शस्त्र पूजा

दहशहरा के दिन शुभ मुहूर्त में घर के सभी शस्त्रों को पूजा स्थल पर रख कर उन पर गंगाजल छिड़कें। महाकाली का पाठ या आरती का उच्चारण करते हुए शस्त्रों पर कुमकुम और हल्दी का तिलक लगाएं। फिर फूलों का हार चढ़ाकर धूप दीप से पूजन करें। सबसे आखिर में मिष्ठान्न का भोग लगा कर सभी में प्रसाद का वितरण करें। 

शुभ मुहूर्त

इस बार दशहरे पर शस्त्र पूजन का शुभ मुहूर्त मात्र 46 मिनट का है। 2 बजकर 5 मिनट और 40 सेकेण्ड से शुरू होकर 2 बजकर 52 मिनट और 29 सेकेण्ड तक रहेगा। 

शुभ कार्य का मिलता है शुभदायक फल

प्राचीन मान्यता के अनुसार दशहरा के दिन शुरू होने वाले शुभ कार्य के फल शुभदायक होते हैं। क्षत्रिय इस दिन जहां शस्त्रों की पूजा करते हैं तो वहीं ब्राह्मण विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं। वैश्य वर्ग इस दिन अपने प्रतिष्ठानों की पूजा अर्चना करता है।