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विजयदशमी : देवाधिदेव के दूत ‘नीलकंठ’ हो रहे विलुप्त

 

 

विजयदशमी पर्व पर नीलकंठ के दर्शन करना बहुत की शुभ माना जाता है लेकिन अब देवाधिदेव महादेव के दूत की उपाधि प्राप्त नीलकंठ पक्षी दर्शन दर्लभ हो गए हैं। पहले नीलकंठ आसानी से दिख जाया करते थे। अंधाधुंध पेड़ों की कटान और पर्यावरण प्रदूषण के चलते नीलकंठ विलुप्त हो गये हैं। बहुत प्रयत्न करने पर यदि कहीं नीलकंठ के दर्शन हो जाये तो सौभाग्य की बात है।

मान्यता है कि दशहरे पर यदि नीलकंठ के दर्शन हो जाये तो भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कहा जाता है कि सुर एवं असुरों द्वारा समुद्र मंथन के बाद उसमें से हलाहल विष निकला। जिसकी तपन से जीव जन्तु अपने प्राण त्यागने लगे। तब सभी ने मिलकर भगवान शिव की आराधना की तथा हलाहल गरल से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। देवासुरों की विनय सुन भगवान शिव ने संसार की भलाई के लिये वह जहर खुद पी लिया। किन्तु जहर पीते ही उन्हें स्मरण आया कि उनके ह्रदय में तो उनके आराध्य देव भगवान श्रीराम विराजमान है और यह जहर यदि गले से नीचे पहुंचा तो भगवान को नुकसान पहुंचा सकता है। जिस पर उन्होंने जहर को अपनी गर्दन से नीचे नहीं उतरने दिया। भगवान शिव की गर्दन जहर के प्रभाव से नीली पड़ गई तभी से उनका नाम नीलकंठ पड़ा। नील कंठ पक्षी की गर्दन भी नीली होती है। इस लिये हिन्दू धर्म में उसे पूज्य और पवित्र पक्षी माना जाता है।

मान्यता है कि यदि दशहरे में नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जायें तो बहुत ही शुभ होता है। पहले नीलकंठ आसानी से दिख भी जाते थे किन्तु दिन प्रतिदिन बिगड़ रहे प्राकृतिक संतुलन से इनकी संख्या में कमी आई है और अब यदा कदा ही नीलकंठ के दर्शन होते हैं। शिकारियों द्वारा पकड़ कर पिंजड़े में बंद नीलकंठ को देख कर ही लोग काम चला रहे हैं। किन्तु मान्यता है कि खुले आसमान में विजरण करते हुए नीलकंठ के दर्शन शुभ होते हैं न कि पिजड़े में कैद। यहां के पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि दशहरे पर्व पर यदि नीलकंठ के दर्शन किसी व्यक्ति को हो जाये तो वह बड़ा ही सौभाग्यशाली होता है। इसके दर्शन मात्र से ही मानव को शुभ फल अवश्य मिलता है। उन्होंने बताया कि आधुनिकता के दौर पर अब लोग वाट्सअप और गूगल पर नीलकंठ के दर्शन करते है।

दैवीय आपदाओं के कारण विलुप्त हुये नीलकंठ

विश्व प्रकृति निधि भारत की बुन्देलखण्ड इकाई के सदस्य रहे पर्यावरण विद ऑपरेशन ग्रीन अवार्ड से सम्मानित जलीस खान ने बताया कि पिछले कुछ दशकों से जंगल और पक्षियों के ठिकाने नष्ट होने से नीलकंठ समेत तमाम पक्षी अब विलुप्त हो गये हैं। जंगल में भी इंसान की गतिविधियां बढ़ जाने से अब इनकी प्रजाति नष्ट होती जा रही हैं। उन्होंने बताया कि समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र में यह पक्षी विलुप्त हो गये हैं। इस क्षेत्र में पिछले एक दशक से लगातार सूखा, ओलावृष्टि व अतिवृष्टि के कारण नीलकंठ पक्षियों का अस्तित्व ही खत्म हो गया है। तीन दशक पहले हमीरपुर और आसपास के इलाके घने पेड़ों से गुलजार थे जहां नीलकंठ पक्षी अक्सर दिखते है लेकिन अब यह पक्षी कहीं नहीं दिखते।