क्या आप जानते है कि शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाते है। और इसके पीछे क्या मान्यता है। आपको बात दें कि पूरे भारत में 12 ज्योतिलिंग है। जिनके पीछे लोगों की कई तरह की मान्यता छिपी हुई है।
शिवलिंग की पूजा क्यों की जाती है। इसके बारे में शायद बहुत कम लोग ही जानते है। शिव को लिगं का नराकार रूप माना जाता है। जबकि उनके साकार रूप में उन्हें भगवान शंकर मानकर पूजा की जाती है।
प्राचीन काल से भगवान शिव के लिंग की पूजा करते आ रहे है। सभी देवों में महादेव के लिंग की ही पूजा क्यों होती है। इस संदर्भ में अलग अलग मान्यताएं और कथाएं है।
जानिए शिवलिंग के पीछे छिपे रहस्य के बारें
शिवलिंग में बाह्राण्ड की आकृति निहित है। और अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्मक की भाषा में देखा जाए तो शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति का आदि अनादि एकल रूप है । तथा पुरूष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है। शिवलिंग से प्रतीता होता है कि इस संसार में न केवल पुरूष का और न ही केवल प्रकृति स्त्री का वर्चस्व है बल्कि दोनों एक दूसरे के पूरक है।
पौराणिक मान्याओं के अनुसार
जब समुद्र मंथन के समय सभी देवता अमृत के आंकाक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्सें में भयकर हलाहल विष आया। उन्होंने बड़ी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा नीलकण्ठ कहलाएं। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवाल शिव के शरीर का दाह बढ़ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा प्रांरभ हुई जो आज भी चली आ रही है।
वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है। मन बुद्धि पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कमेंन्द्रियां और पांच वायु पुराण के अनुसार प्रलयकार के समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है। इस प्रकार की ऊर्जा ही लिंग का प्रतीक है।