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LLB MBA पास इस किसान ने छोड़ी लाखों की नौकरी, किसानी ने बदली किश्मत

हमारे यहां एक कहावत प्रचलन में हैं कि शहरों के बाजार गांवों से सजते हैं। कृषि एक ऐसा माध्यम है जो हमारे लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत बना है। शायद इसी वजह से प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था। बात अगर छत्तीसगढ़ की करें तो हमारे प्रदेश को धान का कटोरा कहा जाता है।

देशभर में सबसे ज्यादा धान का उत्पादन यहीं किया जाता है। इतना कुछ होने के बावजूद भी हमारे अन्नदाता आत्महत्या करने को मजबूर है। सुसाइड की वजह कोई भी हो, लेकिन मरता किसान ही है। वहीं दूसरी ओर कारण यह भी है कि लोग परंपरागत किसानी को ही फॉलो कर रहे हैं।

साथ ही प्रदेश में ऐसे कई लोग हैं जिन्होने लाखों रुपए के पैकेज छोड़कर किसानी की और आज अच्छा मुकाम हासिल किया है। आज किसान दिवस के उपलक्ष्य में हम आपको बताने जा रहे हैं शहर के कुछ किसानों की सक्सेस स्टोरी जिन्होंने पंपरागत खेती से उठकर इनोवेशन करते हुए सफलता के नए आयाम स्थापित किया।

नौकरी छोड़ किया खेती का फैसला

अगर कुछ अलग करने की चाह हो तो भीड़ से हटकर चलना होता है। इन्हीं विचारों के साथ महासमुंद के पास परिक्षित डागा आगे बढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि वह एमबीए के छात्र हैं और डिग्री कंपलीट होने के बाद प्लेसमेंट में कई कंपनियों के ऑफर आए लेकिन उन्होंने पैकेज छोड़कर खेती करने का निश्चय किया। वे बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में लोग ट्रेडिशनल एग्रीकल्चर को प्रायोरिटी देते हैं। मैने सोचा कि क्यों न कुछ अलग करुं, इसलिए हार्टीकल्चर की ओर गया।

जिसमें सबसे पहले मैने केले का उत्पादन शुरू किया और बाद में स्टडी करते हुए सीताफल का उत्पादन किया। वे बताते हैं कि आज हर्बल खेती भी प्रोफिट का सबसे अच्छा रास्ता है। परिक्षित ने हाल ही में रेड जाइबान अमरूद उगाया है जो अन्य अमरुदों की तुलना में बड़ा और मीठा है। उनका कहना है कि यह अमरूद अंदर से डार्क गुलाबी है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में पहली बार केसर आम का भी उत्पादन परिक्षित ने किया है। गौरजलब है कि अभी तक केसर आम गुजरात से आता था। ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रदेश में केसर आम का उत्पादन किया जा रहा है।

दलहन की खेती को दी वरीयता

परसदा निवासी रूपनलाल चंद्राकर का कहना है कि उन्होंने परंपरागत खेती धान को न बोते हुए दलहन की ओर ध्यान दिया है। वे बताते हैं कि हमेशा से उनके यहां धान की खेती की जाती थी जिसमें मेहनत तो बहुत होती थी, लेकिन उम्मीद के मुताबिक प्रोफिट नहीं होता था। इसलिए उन्होंने तय किया कि कुछ अलग तरह से कृषि करुंगा। इसलिए उन्होंने दलहन की खेती करने का फैसला किया।

लोगों ने कहा के मवेशी जमीन है जिसमें उन्हें कोई फायदा नहीं होगा, लेकिन मैने अपने दिल की सुनी। और बाड़ी आधारित खेती करना शुरू किया जिसमें मिट्टी की पलट की और खेती करना शुरू किया। इस कार्य को राज्य सरकार द्वारा सराहा गया। रूपनलाल को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जिला स्तरीय अवार्ड से दो बार सम्मानित किया गया है।