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जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील का दावा-राम मंदिर के ऊपर बना था विवादित ढांचा

 

नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को 15वें दिन सुनवाई हुई। अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने दलील दी कि मस्ज़िद हमेशा मस्ज़िद रहेगी, ये ज़रूरी नहीं। पैगंबर मोहम्मद ने कहा था कि किसी का घर तोड़कर वहां मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। अगर ऐसा किया गया तो जगह वापस उसके हकदार को दे दी जाए। ये एक तरह से उनका वचन था। उनके अनुयायियों पर भी ये वचन लागू होता है। मिश्रा ने कहा कि यह तो साफ है कि मस्जिद (विवादित ढांचा) को मंदिर के ऊपर बनाया गया था, क्योंकि मंदिर के अवशेष उस जगह से मिले हैं।

श्रीराम जन्मभूमि मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सप्ताह में पांच दिन यानी सोमवार से शुक्रवार तक कर रही है। प्रतिदिन करीब चार घंटे सुनवाई हो रही है। पीठ के चार अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।
चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि दो सितंबर (सोमवार) से मुस्लिम पक्ष बहस शुरू करे। ऐसे में कल यानी शुक्रवार (30 अगस्त) को हिंदू पक्षकारों की जिरह पूरी हो सकती है।
पीएन मिश्रा ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में जस्टिस एसयू खान ने कहा था कि मुझे इस बात का सबूत नहीं मिला कि ढांचे का निर्माण बाबर ने कराया था, जबकि जस्टिस अग्रवाल ने कहा था कि औरंगजेब ने बनवाया था। मिश्रा ने कहा कि मुस्लिम पक्षकार यह साबित नहीं कर पाए थे कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने करवाया था। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने माना था मुस्लिम पक्ष ने स्वीकार किया है कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे सिद्ध हो कि मस्जिद बाबर ने बनवाया था। इस बारे में सबूत नहीं है कि 1528 में मस्जिद का निर्माण किया गया।
मिश्रा ने कहा कि यह तो साफ है कि मस्जिद को मंदिर के ऊपर बनाया गया था, क्योंकि मंदिर के अवशेष उस जगह से मिले हैं। कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाई गई। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह साबित नहीं हो पाया है कि विवादित जमीन पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण बाबर ने कराया था या औरंगजेब ने। मेरा मानना है कि जब कोई सबूत नहीं है तो मुस्लिम पक्षकार को विवादित जमीन का कब्जा नहीं दिया जा सकता।

जस्टिस बोबडे ने पीएन मिश्रा से तीन बिंदु स्पष्ट करने को कहा। पहला, वहां पर एक ढांचा था, इस बारे में कोई विवाद नहीं है पर क्या वह ढांचा मस्जिद है या नहीं, बहस यह है। वह ढांचा किसको समर्पित था। मिश्रा ने कहा कि 1648 में शाहजहां का शासन था और औरंगजेब गुजरात का शासक था। इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने अप्पत्ति जताते हुए कहा कि अब तक 24 बार मिश्रा सन्दर्भ से बाहर जाकर किस्से-कहानियां सुना चुके हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये अपने तथ्यों को रख रहे हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने मिश्रा से भी कहा कि सिर्फ सन्दर्भ बताएं। मिश्रा ने कहा कि सिर्फ कोर्ट मुझे गाइड कर सकता है, मेरे साथी वकील नहीं। तब चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि आप स्वतंत्र हैं अपने तथ्य रखने को।

हाईकोर्ट ने माना था-मंदिर को तोड़कर बनी थी मस्जिद

मिश्रा ने कहा कि हाईकोर्ट ने माना था कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को नष्ट कर बनाया गया था। बाबर के कहने पर मीर बाक़ी ने निर्माण किया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा, इसका मतलब है कि हाईकोर्ट ने बहुमत से ये माना था कि इस बात के सबूत नहीं कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने कराया था? मिश्रा ने कहा कि इस्लाम के अनुसार दूसरे के पूजा स्थल को गिराकर या ध्वस्त करके उस स्थान पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। ऐसी ज़मीन जिस पर दो लोगों का कब्ज़ा हो और एक मस्जिद बनाने का विरोध करे तो उस जमीन पर भी मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। उन्होंने कहा कि विवादित ढांचे को जुमे की नमाज के लिए 2-3 घंटे के लिए ही खोला जाता था। इस्लामी कानून के अनुसार अगर कहीं मस्जिद में अजान होती है और दो समय की नमाज नहीं होती है तो वह मस्जिद नहीं रह जाती है।
जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या कोई राजा राज्य की संपत्ति से वक्फ बना सकता है या उसे पहले संपत्ति खरीदनी होगी? तब मिश्रा ने तारीख फिरोज शाही का हवाला देते हुए कहा कि विजित संपत्ति से विजेता पारिश्रमिक के रूप में 1/10 का मालिक है। अपने पारिश्रमिक में से वह एक वक्फ बना सकता है। 1860 तक, अयोध्या में विवादित ढांचे में मुसलमानों के नामज़ पढ़ने का कोई सबूत नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 30 सितंबर 2010 को विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था। पहला- सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा- निर्मोही अखाड़ा और तीसरा- रामलला विराजमान। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें दायर हुई हैं।