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15 सितम्बर का इतिहास : मैं एक इंजीनियर हूं, मेरा नाम है डॉ. एम. विश्वेश्वरैया

 

 

देश में ब्रिटिश हुकूमत थी। खचाखच भरी रेल में ज्यादातर अंग्रेज मुसाफ़िर सवार थे। इसी रेल के एक डिब्बे में एक देसी दिखने वाला शख़्स गंभीर भाव-भंगिमा के साथ बैठा सफ़र कर रहा था। उसकी साधारण वेशभूषा की वज़ह से अनपढ़ मान सभी उससे मुंह फेरे बैठे थे। उस व्यक्ति ने अचानक सीट से उठकर रेल की जंजीर खींच दी। रेल रुकने की वजह से यात्रियों ने उसे भला-बुरा कहा और थोड़ी देर में गार्ड आ गया। उसने पूछा- किसने जंजीर खींची? इस व्यक्ति ने तत्काल कहा कि उसने ही खींची है क्योंकि उसका अंदाज़ा है कि यहां से तक़रीबन एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है। गार्ड ने उससे पूछा कि आख़िर ऐसा दावा वह कैसे कर सकता है? उसने कहा कि उसने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया और पटरी से निकलने वाली आवाज की गति से उसे खतरे का आभास हो रहा है। जब इसकी पड़ताल हुई तो उसका दावा सौ फीसदी सही निकला। पटरी के जोड़ खुले थे और नट-बोल्ट बिखरे पड़े मिले। एक गंभीर हादसा टल जाने पर सभी ने इस व्यक्ति की तारीफ करते हुए उसका परिचय पूछा। उसने जवाब दिया कि `मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम डॉ.एम. विश्वेश्वरैया है।’

15 सितंबर 1861 को इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भीष्म पितामह का मान रखने वाले देश के महान इंजीनियर डॉ.एम. विश्वेश्वरैया का मैसूर में जन्म हुआ था। बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए विश्वेश्वरैया, अद्भुत मेधा की शख्सियत थे। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई मोक्षगुंडम में की और आगे की पढ़ाई बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज से की। यहां कॉलेज की फीस जुटाने के लिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाए। उन्होंने 1881 में बीए के बाद स्थानीय सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। 1883 की एलसीई और एफसीई की परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने के कारण ब्रिटिश हुकूमत में महाराष्ट्र की तत्कालीन सरकार ने उन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर नियुक्त किया। आगे चलकर ज्यादातर अंग्रेज इंजीनियरों के बीच विश्वेश्वरैया ने अपनी मेधा की अलग छाप छोड़ी। 1932 में कृष्ण राजा सागर बांध में निर्माण परियोजना में वे चीफ इंजीनियर के तौर पर थे। इस बांध को बनाना इसलिए आसान नहीं था क्योंकि देश में सीमेंट तैयार नहीं होता था और विश्वेश्वरैया ने सीमेंट की अनुपलब्धता को देखते हुए मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। बांध बनकर तैयार हुआ और यह बांध आज भी अपनी विशिष्टता के साथ मौजूद है। इस बांध से कावेरी, हेमावती और लक्ष्मण तीर्थ नदियां आपस में मिलती हैं। उन्हें 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनकी विशिष्ट सेवाओं की वजह से उनके जन्मदिन पर देश में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर डे मनाया जाता है। जिन्होंने कहा था कि `इंजीनियरिंग सिर्फ 45 विषयों का अध्ययन ही नहीं बल्कि बौद्धिक जीवन का नैतिक अध्ययन भी है।’

 

अन्य प्रमुख घटनाएं

15 सितंबर 1812- नेपोलियन के नेतृत्व में फ्रांसिसी सेना मॉस्को के क्रैमलिन पहुंची।

15 सितंबर 1876- भारतीय उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म हुआ।

15 सितंबर 1894- प्योंगयांग की लड़ाई में जापान ने चीन को करारी शिकस्त दी।

15 सितंबर 1927- प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म।

15 सितंबर 1959- भारत की राष्ट्रीय प्रसारण सेवा दूरदर्शन की शुरुआत हुई।

15 सितंबर 1971- हरी-भरी दुनिया की वचनबद्धता के साथ ग्रीन पीस की स्थापना हुई।