Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

स्ट्राइक रेट जरूरी या धोनी का मैदान में खड़ा रहना?

2 अप्रैल 2011, वानखेड़े का खच्चा-खच भरा स्टेडियम। 135 करोड़ भारतीय टीवी के सामने और सबका सपना एक , वो जीत जो उस वक्त की युवा पीढ़ी ने 1983 में नहीं देखी थी। हम वो महसूस करना चाह रहे थे जो हमने सिर्फ सुना था। सहवाग और सचिन जैसे बड़े नाम पवेलियन लौट चुके थे और उस विश्वकप के हीरो युवराज सिंह को रोक जीत की जिम्मेदारी कंधो पर लेकर आया रांची का नौजवान महेंद्र सिंह धोनी। कहते हैं हर खिलाड़ी का बुरा दौर आता हैं। धोनी जानते थे ये वक्त एक दिन हर कोई भूलेगा। जिस खिलाड़ी के करियर का सबसे यादगार छक्का देश को विश्वकप दिला गया हो,आज जनता के दरवार में उसकी बारी आई हैं। सोशल मीडिया एक बार फिर सेलेक्टर्स की भूमिका में नजर आ रहा हैं। आरोप ये कि धोनी उस स्ट्राइक रेट से रन नहीं मार रहे जिस चित परिचित अंदाज में फैंस उन्हें देखना पसंद करते हैं। क्या धोनी फैंस के लिए खेल रहे है या टीम के लिए ? क्या जिन परिस्थितियों में धोनी बल्लेबाजी करने उतर रहे है, स्ट्राइक रेट एहम है या उनका मैदान में खड़ा रहना?

कुछ पीछे चलते हैं जरा याद कीजिए 2007 टी -20 विश्वकप के बाद युवाओं के हीरो अब दादा, सेहवाग और सचिन जैसे नाम नहीं थे। दिलों पर राज था रांची के एक विकेटकीपर बल्लेबाज का। पाकिस्तान के खिलाफ 183 रनों की पारी ने इस खिलाड़ी को फैंस का चहिता बना दिया था। बनाए भी क्यों न पाकिस्तान के खिलाफ रन मारने वाला हर खिलाड़ी बाइ डिफॉल्ट भारतीय फैंस का हीरो बन जाता हैं। बेशक धोनी पहले खिलाड़ी नहीं जो ट्रॉल्लिंग या कह लीजिए फैंस के सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा हो। लेकिन क्या महेंद्र सिंह धोनी नंबर 4 का शिकार हुए है, बिलकुल उनकी मानसिकता में बदलाव हैं, धोनी वो बल्लेबाजी नहीं कर पा रहे जो वो कर सकते हैं। रिकार्ड्स कहानी बयां कर रहे हैं ,एक ऐसा खिलाड़ी जो इस टीम का सबसे अनुभवी खिलाड़ी है और टीम मैनेजमेंट को ये तक नहीं पता की इस खिलाड़ी को किस जगह बल्लेबाजी करने भेजा जाए।

कौन जिम्मेदार है? मिलकर आकड़ो पर नजर डालते हैं। वो आकड़े जिसके बलबूते लोग धोनी के स्ट्राइक रेट के गिरते स्तर को तो देख पा रहे है लेकिन उसके पीछे उस वजह को नहीं समझ पा रहे जो विश्व के नंबर 1 फिनिशर की किताब का सबसे बुरा दौर लिख रहा हैं।

2011 विश्वकप के बाद

धोनी ने कूल 16 मुकाबले खेले , 65.50 की औसत से 524 रन। टीम के लिए बतौर विकेटकीपर 12 कैच और 5 स्टंपिंग अपने नाम किया। इस साल धोनी ने नंबर 6 पर बल्लेबाजी की लेकिन जब जरुरत पड़ी बतौर कप्तान ऊपर भी बल्लेबाजी करने आए। इस वक्त नंबर 4 पर बल्लेबाजी कर रहे थे रोहित शर्मा। लेकिन इस दौरान ओपनिंग करने आया करते थे सचिन तेंदुलकर और गंभीर और जब सहवाग खेलते थे तो रोहित को बैठा रैना को नंबर 4 खिलाया जाता था। यह उस कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज की बात हैं जो विश्वकप के बाद भारत के लिए सबसे बड़ा टूर्नामेंट था। मिडिल ऑर्डर भी लय में था और ओपनर्स भरोसेमंद भी। धोनी पर उतना दवाब नहीं जितना इस वक्त मिडिल आर्डर के कारण हैं। 2014 तक इतिहास कुछ ऐसा ही है। 2013 में 62.75 की औसत से 753 रन 26 मुकाबलों में बनाया। 2014 में 52.25 की औसत से 418 रन बनाए। इन तीनों साल धोनी का ओवरआल स्ट्राइक रेट 85 से ऊपर का था।

2015 विश्वकप के बाद

ऐसा नहीं था की इस विश्वकप सेमीफइनल में हार ने पहली बार टीम इंडिया को मिडिल आर्डर में ख़राब बल्लेबाजी का एहसास दिलाया। अब टीम इंडिया में नंबर 4 की दौड़ जोरो से शुरू हो गई थी और ये समय था जब 2016 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर धोनी को नंबर 4 पर ट्राय किया गया। लेकिन धोनी इस नंबर पर कुछ खांस नहीं कर पाए। अब तो ऐसा था कि जो कुछ अच्छा कर जाए उसे सेलेक्टर्स नंबर 4 पर ट्राय किए जा रहे थे। मौका मिला रहाणे और मनीष पांडे को। युवराज की कमी सही तौर पर 2015 विश्वकप में दिख गई थी। कोई माने चाहे न माने लेकिन नंबर 4 पर दूसरे युवराज की तलाश शुरू हो गई थी। के एल राहुल , दिनेश कार्तिक , सुरेश रैना , रायडू यहां तक की युवराज सिंह हर किसी को इस्तेमाल किया गया। लेकिन इस विकल्प की तलाश ने धोनी के खेल पर असर डालना शुरू कर दिया था।

धोनी एक ऐसे खिलाडी है जो खेल की हर गेंद का आकलन कर टीम के लिए खेला करते हैं। रिकॉर्ड इसकी गवाही हैं पिछले 52 मुकाबलों में जब-जब धोनी नॉट आउट रहे 49 में जीत 2 में हार और एक मुकाबला रद्द रहा। यानि स्ट्राइक रेट में कमी तो आ रही थी लेकिन उनके नॉट आउट रह जाने पर भारतीय टीम की जीत 90 प्रतिशत से ऊपर कन्फर्म मान ली जाती थी। न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में भी अगर धोनी नॉट आउट रहते तो कहानी कुछ और हो सकती थी। यानि धोनी का धीरे खेलना टीम के लिए था न की भारतीय फैंस के लिए। सोचिए जिस टीम का मिडल बड़े मुकाबलों में धरासाई हो जाए वहां एक अनुभवी भरोसेमंद बल्लेबाज से आप क्या उम्मीद रखते हैं। धोनी ने वहीं किया जो शायद इस वक्त टीम के लिए जरुरी था। जरा सोचिए अगर पंत या हार्दिक पर आप 50 ओवर खेलने की उम्मीद रख पाते तो धोनी भी जरूर उसी उम्मीद मुताबिक खेल दिखा पाते। आने वाले साल में टी-20 विश्वकप हैं और जरुरत हैं नंबर ४ का तलाश जारी रखने की। अगर नंबर 4 से टीम इंडिया पार हो गई तो शायद देश को उसका नंबर 1 फिनिशर दुबारा मिल जाए।