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17 दुश्मनों को गोलियों से भूनकर सदा के लिए सो गये आबिद खान, हर गली में गूंजती है गाथा

 

करगिल विजय दिवस पर किया गया नमन

हरदोई। बीस साल पहले जब देश के जवान मातृभूमि की रक्षा के लिए पाक सेना से लोहा ले रहे थे तो उनमें से पाली कस्बे की माटी में पले बढ़े आबिद खान भी शामिल थे। दिलों दिमाग में हर हाल में दुश्मनों को परास्त करने के जज्बे के साथ पाली कस्बे के इस लाल ने सात जुलाई 1999 को 17 पाक सैनिकों को मार गिराया और आखिरकार उसे अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। यह खबर जब गांव पहुंची तो गम भी था और गर्व भी।

अब 20 साल बीत चुके हैं, किसी को आबिद का बलिदान याद हो या न हो लेकिन बुजुर्ग गफ्फार खान और उनकी पत्नी नरथन बेगम के कलेजे के घाव वैसे के वैसे ही हैं। उस समय न तो वे हिंदू थे और न ही मुसलमान उस समय वह केवल भारत माता के वीर सपूत थे। दुश्मनों की गोली आबिद खां के सीने को पार कर गई और देश का यह पूत भारत माता की गोद में सदा-सदा के लिए सो गया।

शहादत की खबर मिलते ही पत्नी के आगे छा गया था अंधेरा

आबिद खान के बुजुर्ग मां-बाप को उनकी शहादत की खबर मिली तो वह पछाड़ खाकर गिर पड़े। चार बच्चों की मां आबिद की पत्नी फिरदौस बेगम की दुनिया में अंधेरा छा गया। तीन दिन बाद आबिद खान का पार्थिव शरीर पाली में पहुंचा तो शहीद पर श्रद्धा के फूल चढ़ाने का जमघट लग गया। राजकीय सम्मान के साथ कस्बे में ही उसे सुपुर्द ए खाक किया गया, जहां पर प्रशासन की ओर से बनाई गई शहीद की मजार आज भी उनकी शहादत की गाथा गा रही है।

दोस्त गुनगुनाते रहते हैं बहादुरी का तराना

देश पर जान कुर्बान करने वाले भारत मां के वीर सपूत की शहादत पर फर्क मां-बाप को तो है ही, उनकी बहादुरी का तराना गुनगुनाने वाले भी कम नहीं। शहीद आबिद खान के लड़कपन के दोस्त हासिम खां हो या गुलजार शहीद आबिद खाँ का जिक्र सुनते ही उसकी बहादुरी के कारनामों के कसीदे पढ़ने लगते हैं। हाशिम बताते हैं कि अपनी बहादुरी से टोली नायक बनने के बाद जब आबिद खां यहां छुट्टियों में आए थे तो सीमा पर होने वाली गोलीबारी की दास्तां सुनाकर वह तो दहल जाते थे लेकिन आबिद के चेहरे पर सिकन तक नहीं आती थी।

शिक्षक भी करते हैं बहादुरी को सलाम

शहीद के बचपन के गुरु वेद राम राजपूत भी आबिद की बहादुरी को सलाम करते हैं। प्राथमिक स्कूल से शिक्षा लेकर सेठ बाबू राम भारती इंटर कॉलेज से इंटर करने तक के दौरान को याद करते हुए भी उनके दोस्तों की आंखों में आंसू छलक पड़ते हैं। वही बुजुर्ग ओमप्रकाश यज्ञ दत्त शुक्ला कहते हैं कि कस्बे की गलियों से निकल कर देश की सीमा पर जो दुश्मनों के छक्के छुड़ा कर आबिद पाली और हरदोई का नाम भी वीर सपूतों के सूची में शामिल करा दिया।

शहीदों के परिजनों को किया गया पुरस्कृत

करगिल शहीद दिवस को विजय दिवस के रूप में मनाया गया। शहीदों की पत्नियों को सिटी मजिस्ट्रेट गजेंद्र कुमार, सीओ सिटी विजय राणाा, मजिस्ट्रेट कपिल देव सिंह ने समान्नित किया। उनके परिजनों को पुरस्कृत किया गया। जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय में सभी पूर्व सैनिकों ने जनपद के वीर शहीदों की पुण्य तिथि पर उन्हें याद कर उन्हें नम आंखों से श्रद्धांजलि दी गई। इस विजय दिवस पर सैकड़ों सैनिक मौजूद रहे।