गुरु नानक देव जी ने जिन मूल्यों के आधार पर सिख पंथ की स्थापना की थी वे मूल्य दुनिया को बेहतर बनाने के संकल्प सूत्र हैं। स्त्रियों को बराबरी का दर्जा, छुआछूत का विरोध और सभी को एक बराबर समझना उनकी प्रमुख शिक्षा रही हैं। प्रकाशपर्व गुरु की शिक्षाओं पर चलकर हमें अपने आसपास पनप रहे अंधेरों को जीतने का संदेश देता है।
सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु गुरुनानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा माना जाता है। सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को प्रकाश उत्सव और गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं। नानकदेव अपने सत्तर वर्ष के संपूर्ण जीवन में समाज के लोगों को दोहों और गीतों के माध्यम से उपदेश देते रहे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों, रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, जात-पांत एवं ऊंच-नीच का भेदभाव मिटाने का प्रयत्न किया।
नानकदेव का कहना था कि सभी धर्म के लोग एक ही ईश्वर की संतान हैं इसलिए सभी मनुष्य समान हैं। फिर भेदभाव क्यों? गुरु नानकदेवजी ने अन्य संतों की इस धारणा का खंडन किया कि घर-गृहस्थी छोड़कर जंगल में तपस्या करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है, उनका आग्रह था कि सभी अपना गृहस्थ धर्म निभाते हुए ईश्वर साधना में लगे रहें।
अपने सभी उपदेशों में नानकदेवजी ने हृदय की निर्मलता और कर्तव्यनिष्ठा पर ही जोर दिया। उनका मानना था कि ईश्वर मनुष्य के अच्छे कर्मों को देखता है और ऐसे मनुष्यों पर ईश्वर की कृपा होती है।
गुरु नानकदेवजी ने अपने शिष्यों को यही उपदेश दिया कि अपने मन में अहं भाव एवं धन का अभिमान, लालच, बेईमानी और व्यर्थ के आडम्बर नहीं करना चाहिए। गुरुदेव ने दलितों और गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा बताई है।
गुरु नानक देव की गुरुवाणी 974 दोहों में निबद्ध है जिसे सिख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब कहा गया है। नानक देव ने कहा था कि एक बार उन्हें ईश्वर के दरबार में ले जाया गया। वहां उन्हें एक अमृत का प्याला दिया और साथ ही यह आदेश दिया कि ‘यह प्याला ईश्वरीय शक्ति से भरा है, इसे पी जाओ। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं और तुम्हारा उत्थान करूंगा। जो भी कोई व्यक्ति तुम्हारा स्मरण करेगा
उसे ईश्वर की कृपा तत्काल प्राप्त होगी। अत: मेरे ईश्वर नाम का सर्वत्र प्रचार करो। मैं तुम्हें यह वरदान देता हूं कि तुम्हारे भीतर ईश्वरीय शक्ति है।’ नानक देव की घोषणा से उनके शिष्यों ने उन्हें गुरु कहना शुरू कर दिया। गुरु नानक देव में ईश्वरीय या दैवीय प्रतिभा तो बाल्यकाल से ही थी। सत्य की खोज में लगे रहना, साधु और फकीरों की
संगति में रहना और साधना और ध्यान में लगे रहना उनका नित्य कर्म था। इसलिए गुरुदेव एक पवित्र आत्मा की तरह रहे। गुरु नानक देव द्वारा प्रचलित सिख पंथ दया एवं शांति का संदेश दिया गया है। सिख धर्म के अनुयायी आज भी गुरु ग्रंथ साहिब में दिए गए उपदेशों के अनुकूल ही जीवन में आचरण करते हैं। गुरु ग्रंथ
साहिब में सिखों के दस गुरु में से छ गुरुओं के धर्मोपदेश निहित हैं। यह ग्रंथ अति पवित्र माना गया है और इसे ग्यारहवां गुरु कहा गया है। इस ग्रंथ में 974 पद गुरु नानक देव के उपदेश हैं।
नानक देव के तीन प्रमुख उपदेश हैं
– वण्ड चक्को- दूसरों के साथ मिल-बांटकर रहना और जरूरतमंद की मदद करना
– किरत करो- बिना किसी को नुकसान पहुंचाए ईमानदारी से कमाना
– नाम जपना- ईश्वर का नाम स्मरण करते हुए अपने पर नियंत्रण रखना
नानक देव जी ने नाम जप या नाम सिमरन से ईश्वर की अनुभूति होना बताया है। क्योंकि नानक देव निर्गुण ईश्वर के उपासक हैं इसलिए वे मूर्ति पूजा का विरोध करते रहे।
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गुरु नानक देव ने अपने धर्मोपदेश के प्रचार हेतु अनेक देश-विदेश की यात्रा की जिसे ‘उदासी’ कहा है। उन्होंने तिब्बत, अरब, मक्का, मुल्तान आदि देशों में जाकर बंधुत्व की भावना का उपदेश दिया। 70 वर्ष की आयु में उन्होंने सद्गति प्राप्त की।