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जब पीरों को बताया, ‘संत कौन होते हैं?’

एक बार सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी मुलतान की यात्रा पर गए। जब मुलतान पहुंचे तो पीरों के बाबा ने दूध से भरा कटोरा भेजा। यह एक तरह का संदेश था कि मुलतान में बहुत से पीर हैं। वह यहां नहीं रहें।

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लेकिन बदले में गुरु नानक जी ने उनको बगली का फूल भिजवाया। इसका अर्थ था कि जिस तरह गंगा में सभी सागर समा जाते हैं, ठीक उसी तरह वह भी पीरों में रम जाएंगे।

गुरु नानक देव जी का यह व्यवहार देख पीर प्रसन्न हुए। वह उनसे मिलने के लिए आए। और नानक जी से कहा, हमने आपके साथ इस तरह का व्यवहार किया और आपने क्षमा कर दिया।

तब गुरु नानक जी ने कहा, ‘संत हमेशा दूसरों के अच्छे गुण देखकर खुश होते है। पराई स्त्री को बुरी नजर से नहीं देखते। बुरे पुरुषों का संगति नहीं करते। वैरी-मित्र को एक जैसा समझते हैं।

आदर-अनादर, शौक-हर्ष को एक समान समझते हैं। वे परमेश्वर की याद में लीन रहते हैं। पीरों ने गुरु नानक जी के वचन सुन भावनात्मक रूप से उनकी ओर नतमस्तक हो गए।’

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