Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

इस बार ये न सोचें, ‘मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?’

do_not_think_25_11_2016एक समझदार व्यक्ति सदैव परिस्थिति के कारण को जानकर व समझकर उसके निवारण के बारे में सोचेगा न की यह सोचकर अपना समय व्यर्थ गंवाएगा की मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? इसीलिए इतनी जल्दी हार न मानें क्योंकि जीवन बहुत छोटा हैं।

ऐसी छोटी-मोटी बातो में समय गंवाने से अच्छा होगा कि हम चोट क्यों लगी? उसके बारे में न सोचकर यह सोचें कि इससे हमें क्या सीखने को मिला। इसी में हमारा लाभ है और हमारी भलाई है।

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का कहना था की ‘कोई भी मेरी अनुमति के बिना मुझे चोट नहीं पहुंचा सकता’, किन्तु सत्य तो यही हैं की हममें से ज्यादातर लोग अपने विविध संबंधों में एक-दूसरे को चोट पहुंचाते ही रहते हैं। और हम यह इसीलिए करते हैं क्योंकि हमेंयह करना ही है।

इसके पीछे कोई ठोस कारण नहीं हैं, लेकिन यह कुछ ऐसा है जो बस अपने आप ही हो जाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ज्यादातर लोग किसी को इसीलिए चोट पहुंचाते हैं क्योंकि वह उस चीज को पाने की अपेक्षा रखते हैं जो उन्हें मिलनी नहीं हैं या फिर वे उस चीज से छुटकारा पाना चाहते हैं जो उनके पास हैं।

यदि हम सभी गौर से अपने आप को देखेंगे तो हमें यह पता चलेगा कि हममें से अधिकांश लोग ऊपर बताई हुई दो परिस्थितियों में से एक से लगातार जूझते ही रहते हैं और हमें यह भी पता नहीं होता कि इससे बाहर कैसे निकला जाये और इसीलिए ही हमें यह लगता है कि अपने मन की मुराद पूरी करने के लिए हमारे पास केवल मात्र एक ही रास्ता है और वह है सामने वाले व्यक्ति को चोट पहुंचाना।

तो क्या यह रास्ता ही ठीक हैं? इस ही विधिको अपनाकर छुटकारा पाया जा सकता है? किसी को चोट पहुंचाने के कई कारण हो सकते हैं, किन्तु उनमें से सबसे आम कारण है वह है ‘अतृप्त इच्छाएं’ जिसके हम सभी बहुत अच्छे अनुभवी हैं।

मसलन, मान लीजिए हम किसी व्यक्ति से पहली बार मिलते ही उसके प्रेम में पड़ जाए और वह हमारे मन को बहुत भाने लगे। अब इसके पहले की हमारे बीच किसी प्रकार का भावनाओं का आदान-प्रदान हो, हम अपने ही बुने हुए सपनों के जाल में इस कदर फंस जाते हैं कि उससे फिर बहार निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता है।

कुछ समय के संघर्ष के बाद जब हमें अपना मन चाहा प्रतिभाव सामने वाली व्यक्ति से नहीं मिलता, तो हम बड़े दुखी और मायूस हो जाते हैं और फिर तुरंत ही हम उस व्यक्ति को दोष देना शुरू कर देते हैं कि ‘तुमने मुझे गहरी चोट पहुंचाई’,’तुमने मेरा दिल तोड़ दिया’ वगैरह वगैरह…यह सारी कश्मकश से कुछ समय बाहर आकर यदि हम शांति से किसी कोने में जाकर खुदसे यह प्रश्न करें की क्या उस व्यक्ति के प्रति हमारी अपेक्षाएं पहले से ही उचित थी?

क्या उस व्यक्ति ने जरा भी झुकाव दिखाया कि जिससे हम यह मानें कि वह भी हमारे प्रति वैसी ही भावना रखती हैं जैसी की हम उसके प्रति रख रहे हैं? प्रेम की भावना क्या दोनों तरफ से पारस्परिक थी?

जब सामने वाले की भावनाओं को समझने का समय था, तब उसकी बातों को सुनने व समझने के बजाय हम हवा में ह्रश्वयार के महल बनाने में मसरूफ रहे, जब उस व्यक्ति को सांस लेने की थोड़ी जगह देने का समय था, तब हम अपने जबरदस्ती के स्नेह से उसे घुटन महसूस कराते रहे, क्या यह व्यवहार योग्य है?

यह बात मायने नहीं रखती है कि आप किस प्रकार के संबंध में हैं, महत्वपूर्ण यह है कि आप अपनी भावनाओं को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करें क्योंकि अनकहे शब्दों का भारी बोझ अक्सर हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।इसलिए यह बेहतर है कि हम अपने मन में जो भी बात है वह कह दें। हम अपने ही बुने हुए सपनों केजाल में इस कदर फंस जाते हैं कि उससे फिर बहार निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता है।

कुछ समय के संघर्ष के बाद जब हमें अपना मनचाहा प्रतिभाव सामने वाली व्यक्ति से नहीं मिलता, तो हम बड़े दुखी और मायूस होजाते हैं…यह ना सोचें कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.