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कुछ इस तरह धर्म ग्रंथो में मिलता है माँ नर्मदा का उल्लेख…इस वजह से की जाती है परिक्रमा

सभी लोग जानते हैं कि माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती का पर्व मनाते है. ऐसे में इस बार नर्मदा जयंती 12 फरवरी, मंगलवार को यानी आज है.

आप सभी को आज हम बताने जा रहे हैं कहां से शुरू होता है नर्मदा का सफर – कहते हैं अमरकंटक से प्रकट होकर लगभग 1200 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंभात में अरब सागर में मिलती है.

इसी के साथ विध्यांचल पर्वत श्रेणी से प्रकट होकर देश के ह्रदय क्षेत्र मध्यप्रदेश में यह प्रवाहित होती है और नर्मदा के जल से मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा लाभान्वित है. कहा जाता है यह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है तथा डेल्टा का निर्माण नहीं करती और इसकी कई सहायक नदियां भी हैं.

आइए जानते हैं धर्म ग्रंथों में नर्मदा

कहते हैं स्कंद पुराण में लिखा है नर्मदा प्रलय काल में भी स्थायी रहती है एवं मत्स्य पुराण के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से पवित्रता आती है और इसकी गणना देश की पांच बड़ी एवं सात पवित्र नदियों में होती है. कहते हैं गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा को ऋग्वेद, सामवेद, यर्जुवेद एवं अथर्ववेद के सदृश्य समझा जाता है और महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार इसके दोनों तटों पर 60 लाख, 60 हजार तीर्थ हैं एवं इसका हर कण भगवान शंकर का रूप है.

कहा जाता है इसमें स्नान, आचमन करने से पुण्य तो मिलता ही है और इसके दर्शन से भी पुण्य लाभ हो जाता है. ज्योतिषों के अनुसार नर्मदा अनादिकाल से ही सच्चिदानंदमयी, आनंदमयी और कल्यायणमयी नदी रही है और नर्मदा के किनारे तपस्वियों की साधना स्थली भी हैं और इस कारण से इसे तपोमयी भी कहते हैं. कहा जाता है यह विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है क्योंकि इसके हर घाट पर पवित्रता का वास है.