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सीतामढ़ी : लवकुश कुमारों ने यहीं बांधा था प्रभु श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा

 

 

 

भदोही। धर्मनगरी काशी-प्रयागराज के मध्य भदोही के दक्षिणांचल में गंगा तट पर बसा सीतामढ़ी महर्षि बाल्मिकी की तपोस्थली है। धार्मिक मान्यता के अनुसार तेत्रायुग में इसी पवित्र स्थली पर लव-कुश कुमारों ने प्रभु श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को बांधा था और उनकी चतुरंगिणी सेना को पराजित किया था। मां सीता अग्नि परीक्षा के दौरान यहीं धरती में समाहित हुई थीं। अनादिकाल से यहां अषाढ़ मास की शुक्लपक्ष को नौमी मेले का आयोजन होता है। यह मेले पूरे नौ दिन चलता है। 03 जुलाई को इसकी शुरुआत हुई थी और बुधवार यानी 10 जुलाई को समापन होगा।

मां सीता ने यहीं दी थी अग्नि परीक्षा

भागीरथी यानी मां गंगा इस पवित्र तीर्थ स्थल को छूती हुई चंद्राकार होते हुए निकलती हैं। महर्षि बाल्मिकी की तपोस्थली ठीक गंगा तट पर है। जहां आप पहुंच कर उस तेत्रायुग की तपोस्थली का अवलोकन कर सकते हैं। जब प्रभु श्रीराम ने अयोध्या की प्रजा के विश्वास की रक्षा के लिए मां सीता का अग्नि परीक्षा के लिए निर्वासन किया था तो यहां घोर जंगल था। तुलसीदास ने अपनी कवितावली में इस स्थान का उल्लेख भी किया है, ‘जहां बाल्मिकी भयो व्याध ते मुनींद्र, साधुए सिय को निवास लवकुश जनम थलु। बारिपुर, दिगपुर बीच बिलसति भूमि।’ ये सभी सभी गांव आज भी यहां मौजूद हैं। जंगल होने के प्रमाण भी मिलते हैं। निर्वासन के दौरान इसी तपोभूमि में लवकुश कुमारों का जन्म हुआ था। बाद में जब प्रभु श्रीराम ने अश्वमेध का यज्ञ का घोड़ा छोड़ा तो उसे बांधने वाले लवकुश कुमार ही थे।

 

 

सैलानियों को लुभाती है 108 फीट ऊंची हनुमान प्रतिमा

दिल्ली की पुंज लायड संस्था ने यहां का अच्छा विकास कराया है। जिस जगह मां सीता धरती में समाहित हुई थीं वहां एक दो मंजिला भव्य मंदिर का निर्माण कराया है। मंदिर के नीचले तल में धरती में समाहित होती मां सीता की भव्य प्रतिमा है। जबकि उपरी तल पर कांच की कलात्मक के साथ मां सीता की मनमोहक प्रतिमा स्थापित की गई है। परिसर में 108 फीट आसमान को नापती महाबली बजरंगबली की प्रतिमा पर्यटकों को दूर से अपनी तरफ आकर्षित करती है। यह एशिया की सबसे उंची हनुमान प्रतिमा है। कैलाश पर्वत पर शिव की जटा से निकलती गंगा मन को मोह लेती हैं। सीता माता के केश भी एक घास के रुप में बिखरी पड़े हैं। मान्यता है कि उसे आपस में बांधने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसे बगही माता केस के नाम से लोग जानते हैं। झील और फौव्वारे रात की रोशनी में सुंदरता नयनाभिरात बनाते हैं।

अनादिकाल से लगा रहा है रामायण मेला

अखिल भारतीय रामायण मेले को स्थानीय लोग नौमी या फिर लवकुश मेले के रुप में पुकारते हैं। पूरे नौ दिन तक धार्मिक प्रवचन का आयोजन होता है। मेले का आयोजन अनादिकाल से होता चला आ रहा हे। अंतिम दिन भव्य मेला लगता है, जिसे देखने कई जिलों से लोग पहुंचते हैं। जिला प्रशासन की तरफ से बिजली, पानी के साथ साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता है। पर्यटक स्थल पर पहुंचने के बाद पूरा प्राकृतिक वातावरण आपको मिलेगा। प्रयागराज से राष्टीय राजमार्ग से चल कर भीटी और वाराणसी से आने पर जंगीगंज नामक स्थल पर उतर कर सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। दोनों स्थलों से इसकी दूरी सीतामढ़ी की दूरी 11 किमी के आसपास है। पर्यटन स्थल तक निजी साधन चलते हैं। जिला प्रशासन विकसित करने के लिए योगी सरकार को प्रस्ताव भेजा है।

देश-दुनिया से पहुंचते हैं सैलानी

भारत के पर्यटन मानचित्र पर सीता समाहित स्थल बेहद तेजी से उभरा है। यहां पूरे साल देश और दुनिया से पर्यटक आते हैं, अब तो विदेशी सैलानियों की भी आमद बढ़ने लगी है। इस पूरे इलाके को दिल्ली के उद्योगपति पुंज परिवार ने विकसित किया है। यहां सबसे बड़ा वातानुकूलित हाल के साथ सीबीएसई आधारित कॉलेज, बीएड कालेज जैसी सुविधाएं हैं। तीन सितारा होटल भी है, जहां पर्यटक भोजन और रात्रि विश्राम भी कर सकते हैं। पूरे इलाके को पुंज परिवार ने बेहद अच्छे तरीके से विकसित किया है। लायड पुंज टस्ट की तरफ से हर साल गरीब बेटियों के सामूहिक विवाह का आयोजन होता है। बेहद रमणीक और प्राकृतिक छटा से संपंन सुरम्य स्थल है।