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जानिए आखिर क्यों मनाया जाता है बैकुंठ चतुर्दशी, ये है पौराणिक कथा…

सभी इस बात से वाकिफ हैं कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है और वहीं इस दिन बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान माना जाता है.

इसी के साथ आप सभी जानते ही होंगे कि इस बार बैकुंठ चतुर्दशी 22 नवंबर को यानी आज मनाई जा रही है. तो आइए आज जानते हैं बैकुंठ चतुर्दशी से जुडी पौराणिक कथा.

पौराणिक कथा

सतयुग की एक घटना का विवरण धार्मिक पुस्तकों में मिलता है. इसके अनुसार, जब भगवान विष्णु को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर राजा बलि उन्हें अपने साथ पाताल ले गए, उस दिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी. चार माह तक बैकुंठ लोक श्रीहरि के बिना सूना रहा और सृष्टि का संतुलन गड़बड़ाने लगा.

तब मां लक्ष्मी विष्णुजी को वापस बैकुंठ लाने लिए पाताल गईं. इस दौरान राजा बलि को भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि वह हर साल चार माह के लिए उनके पास पाताल रहने आएंगे. इसलिए भगवान विष्णु हर साल चार माह के लिए पाताल अपने भक्त बलि के पास जाते हैं. जिस दिन मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु बैकुंठ धाम वापस लौटे, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी. इस दिन भगवान विष्णु के बैकुंठ लौटने के उत्सव को उनके जागने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

बताया गया है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रीहरि जागने के बाद चतुर्थी तिथि को भगवान शिव की पूजा के लिए काशी आए. यहां उन्होंने भगवान शिव को एक हजार कमल पुष्प अर्पित करने का प्रण किया. पूजा-अनुष्ठान के समय भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णुजी की परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प गायब कर दिया. जब श्रीहरि को एक कमल कम होने का अहसास हुआ तो उन्होंने कमल के स्थान पर अपनी एक आंख (कमल नयन) शिवजी को अर्पित करने का प्रण किया. जैसे ही श्रीहरि अपनी आंख अर्पित करनेवाले थे, वहां शिवजी प्रकट हो गए. वहीं शिवजी ने विष्णुजी के प्रति अपना प्रेम और आभार प्रकट किया.

साथ ही उन्हें हजार सूर्यों के समान तेज से परिपूर्ण सुदर्शन चक्र भेंट किया. भगवान शिव के आशीर्वाद और उनके प्रति विष्णुजी के प्रेम के कारण ही इस दिन को हरिहर व्रत-पूजा का दिन कहा जाता है. भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जो भी मनुष्य कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी. इसीलिए इस तिथि को बैकुंठ चतुर्थी तिथि भी कहा जाता है.