केंद्र के निर्देश पर राज्य शासन ने छह से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों को नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने का उपबंध 16 फरवरी 2010 को अधिसूचित किया और वह 1 अप्रैल 2010 से लागू हो गया। अधिनियम में छात्र-शिक्षक अनुपात, हर मौसम के लिए उपयुक्त स्कूल भवन, पुस्तकालय, खेल मैदान आदि के तमाम प्रावधान हैं। पर उन सबको लागू करने में मेहनत व पूंजी लगती है। सबसे सरल यही था कि बच्चों को 8वीं तक निर्बाध पास होने दिया जाए। इसमें शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों और शासन आदि सबको आराम था। सो, पिछले पांच साल से यह लागू रहा। इस स्थिति में 5वीं, 8वीं बोर्ड परीक्षा का औचित्य नहीं था। सो, उन्हें पहले साल से ही खत्म कर दिया गया।
बोर्ड परीक्षाएं थीं तो पढ़ने-पढ़ाने में कसावट रहती थी। वे खत्म हुईं तो माहौल में एक सर्वांगीण शिथिलता पसर गई। कक्षा में छात्रों की उपस्थिति कम रहने लगी। शासन और निजी स्कूलों को कम शिक्षकों से काम चलाने और तनख्वाह बचाने का मौका मिल गया। स्थानीय परीक्षाएं मखौल बनकर रह गईं। ट्यूशन का धंधा फलने-फूलने लगा। 10वीं की बोर्ड परीक्षा थी तो उसका परीक्षाफल बिगड़ने के डर से शिक्षकों ने 9वीं में सख्ती दिखाई। बच्चे फेल हुए तो अभिभावक तर्क देने लगे कि बच्चा कमजोर था तो आज तक फेल क्यों नहीं हुआ? उसे जानबूझकर फेल किया है।पढ़ाई और परीक्षा का दबाव नहीं रहा तो बच्चों की ऊर्जा दीगर चीजों में खर्च होने लगी। स्कूलों का अनुशासन बिगड़ने लगा। किताबों और पढ़ाई से बचा पैसा मोबाइल, जन्मदिन आदि में खर्च होने लगा। बच्चे सोचने-विचारने और मौलिकता की ओर बढ़ने की जगह वॉट्सएप पर कट एंड पेस्ट को मौलिकता और जन्मदिन मनाने को उपलब्धि समझने लगे। पढ़ाई के गिरते स्तर का असर शिक्षकों पर भी हुआ। सर्वेक्षण के दौरान उन्होंने दीवारों पर ‘स्कूल चलें हम” का नारा जगह-जगह लिखा है। वे अधिकांश जगह सिर्फ ‘हम” को ही सही वर्तनी में लिख पाए।अधिनियम में कई अच्छे प्रावधान भी हैं, जैसे निर्धारित योग्यता अनुरूप शिक्षकों की व्यवस्थ्ाा 5 वर्ष में सुनिश्चित करना, शिक्षकों को जनगणना, चुनाव और आपदा राहत को छोड़ किसी अन्य गैर-शिक्षकीय कार्य में नहीं लगाना। केपिटेशन फीस पर प्रतिबंध, न्यूनतम अधोसंरचना, बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय, स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल आदि। शासन को इन पर ध्यान देना चाहिए।
गर्व और खुशी की बात है कि 5वीं, 8वीं बोर्ड परीक्षा फिर शुरू करने का प्रस्ताव केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड में मप्र ने ही रखा और वह स्वीकृत हुआ। हमें संशोधित प्रावधान को उत्साहपूर्वक स्वीकार करना चाहिए। अच्छाई जितनी जल्दी शुरू हो, उतना अच्छा।