आप सभी जानते ही होंगे कि आज फादर्स डे है और आज के दिन पिता को खूब स्पिकाल फील करना चाहिए. ऐसे में आज हम आपको एक कहानी बताने जा रहे हैं जो एक नालायक बेटे और दयालु पिता की है. आइए बताते हैं.
कहानी
शाम के 8:00 बजे का समय है दरवाजे के खटखटाने की आवाज आती है. कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुलता है. अंदर से राजू की मां की आवाज आती है. कि देख तेरे पिताजी आ गए होंगे दरवाजा खोल दे लेकिन राजू तो अपने मोबाइल में ही मस्त हुआ पड़ा है जबकि वह दरवाजे के नजदीक ही बैठा था. आखिरकार राजू ने दरवाजा नहीं खुला तभी राजू की मां चंदा बाहर आई और दरवाजा खोला राजू के पिता अंदर आते हैं. जिनके कपड़े पूरी तरीके से मेले हैं जो कि एक गिराज में काम करते हैं और गाड़ी मोटर ठीक करके पैसा कमाते हैं.
हालांकि यह एक तरह की मजदूरी ही है लेकिन घर चलाने के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ता है वही राजू अपने मोबाइल में अभी तक मस्त है. रात के खाने का समय होता है राजू की मां चंदा राजू का आवाज लगाती है राजू के पिता भी खाने के लिए बैठे हैं. तभी राजू आता है और पूछता है कि खाने में क्या बना है जैसे ही राजू की मां चंदा बैगन का नाम लेती है तो मानो राजू के चेहरे का तो नक्शा ही बिगड़ जाता है और राजू कहता है कि यह सब क्या फालतू की चीजें बनाती हो तभी मां उसे थोड़ा बहुत डांट फटकार के भोजन करा देती है. राजू के पिता राजू से पूछते हैं कि बेटा आजकल पढ़ाई कैसी चल रही है राजू का बड़ा ही बेरुखी से जवाब आता है कि आपको बता भी दूंगा तो क्या पता चलेगा आप तो पढ़े-लिखे नहीं है.
बस फिर क्या था राजू की आंखें भर आई और रोने लगा और तुरंत अपने पिता के पास गया और अपने पिता की अहमियत समझ गया उनके पांव पकड़कर रोने लगा. यह तो सिर्फ एक राजू की कहानी थी न जाने कितने राजू हमारे आसपास यहां हमारे घर में भी होंगे यहां बात केवल पैसे चुराने की नहीं है अपने माता-पिता के मेहनत की कमाई को मनमानी के साथ खर्च करने की आदत भी एक तरह की चोरी ही है उम्मीद करते हैं आपको इस कहानी से कुछ सीख मिली होगी.