488 साल पुराने इतिहास को समेटे इस मुद्दे की आंच आज भी सियासत को सींच रही है। 6 दिसंबर 1992 का काला इतिहास आज भी लोगों के जेहन में है। तब केंद्र में कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार थी। सुबह 11 बजे के करीब वीएचपी नेता अशोक सिंघल, बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवाणी बाबरी की तरफ बढ़ रहे थे।
तभी पहली बार इसका बाहरी दरवाजा तोडऩे की कोशिश हुई लेकिन पुलिस ने उसे नाकाम कर दिया। सुबह साढ़े 11 बजे तक विवादित स्थल सुरक्षित था। तभी वहां पीली पट्टी बांधे कारसेवकों का आत्मघाती दस्ता आ पहुंचा। कुछ ही देर में सुरक्षा में लगी पुलिस की इकलौती टुकड़ी वहां से बाहर निकल गई।
तुरंत बाद मेन गेट पर दूसरा और बड़ा धावा बोला गया। दोपहर के 12 बजे कारसेवकों के नारों की आवाज पूरे इलाके में गूंजती जा रही थी। कारसेवकों का एक बड़ा जत्था दीवार पर चढऩे लगा। बाड़े में लगे गेट का ताला भी तोड़ दिया गया। कारसेवकों ने वहां कब्जा जमा लिया।
कुदाल लिए हुए कारसेवक विवादित स्थल गिराने का काम शुरू कर चुके थे। कुछ ही घंटों में विवादित स्थल पूरी तरह से गिरा दिया।
आडवाणी की सुरक्षा में तैनात आईपीएस अधिकारी का बयान
-1990 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजु गुप्ता 6 दिसंबर 1992 को ढांचे के ध्वस्त होने के समय फैजाबाद की असिस्टेंट एसपी थीं और उन्हें आडवाणी की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था।उनका बयान भी कोर्ट में दर्ज हुआ है। जिसके मुताबिक 6 दिसंबर 1992 को विवादित स्थल से 150 मीटर दूर मंच बनाया गया था। इस मंच पर आडवाणी के अलावा मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, विहिप के अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया और साध्वी ऋतंभरा मौजूद थे।
विवादित ढांचे का पहला गुंबद दोपहर 2 बजे, दूसरा 3 बजे और तीसरा 4:30 बजे गिरा।