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पिता और भाई का फर्ज निभाने वाले सैनिक की विधवा पत्नी को मिला सेना कोर्ट से न्याय श्रीमती फिरोज बानो को सत्रह साल बाद मिला दिवंगत पति के त्याग का परिणाम

लखनऊ, उत्तर-प्रदेश के जनपद बहराईच की रहने वाली श्रीमती फिरोज बानो को कोर्ट मार्शल द्वारा सेना की राजपूत रेजिमेंट से बर्खास्त दिवंगत पति सिपाही मो.युनुस खान को सोलह साल बाद सशत्र-बल अधिकरण, लखनऊ की न्यायमूर्ति रवीन्द्र नाथ कक्कड़ (रि०) एवं वाईस एडमिरल अतुल कुमार जैन (रि०) की खण्डपीठ ने पेंशन दिए जाने का फैसला सुनाया l मामला यह था कि वर्तमान में लखनऊ में बेटियों के सहारे जिंदगी गुजारने को मजबूर श्रीमती फिरोज बानो के दिवंगत पति 4 जुलाई,1990 को राजपूत रेजिमेंट की 25वीं इन्फैंट्री बटालियन में भर्ती हुए थे, जिस समय सैनिक 20 माउंटेन डिवीजन में सेवारत था उसकी बहन श्रीमती नसीम बानो का पारिवारिक एवं वैवाहिक जीवन गंभीर खतरे में पड़ गया l
बहन के सामने खड़ी विषम परिस्थति में 4 अप्रैल,2005 को बासठ दिन की लंबी छुट्टी लेकर, बहन के घर गोंडा पहुंचा l पुलिस अधीक्षक गोंडा से मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगाई जिस पर महिला हेल्प लाईन गोंडा ने सक्रियता दिखाते हुए मामले का संज्ञान लिया l लेकिन, मामला लंबा खिंचने के कारण छुट्टी समाप्त होने लगी, घर में सैनिक के अलावा मामले की पैरवी करने वाला कोई नहीं था l सैनिक को पिता और भाई दोनों का फर्ज निभाना था इसलिए, वह अपनी लाचारी से उच्च-अधिकारियों को अवगत करा रहा था, लेकिन उसे 7 सितंबर, 2005 को भगोड़ा घोषित कर दिया गया l बहन के ससुराल पक्ष ने मौके का फायदा उठाकर 16 नवंबर, 2005 को मामले में फर्जी शपथ-पत्र दाखिल करके मामले को लंबा खींचने की नापाक कोशिश की जिससे, सैनिक की नौकरी न बचे लेकिन, जांबाज सैनिक ने बहन को अकेला न छोड़ने का फैसला किया और, लड़ाई को आगे बढ़ाया और अंततः व बहन को न्याय दिलाने में सफल हुआ

अब सैनिक के सामने सिर्फ आत्म-समर्पण ही विकल्प था लेकिन, वह सेना के सामने समर्पण करे उससे पहले ही उसको मध्य कमान की प्रोवोस्ट यूनिट द्वारा 21 अगस्त, 2007 को गिरफ्तार कर लिया गया, कोर्ट आफ इन्क्वायरी हुई, समरी आफ एविडेंस रिकार्ड किया गया फिर कोर्ट मार्शल करके 13 सितंबर, 2007 को सेना से बर्खास्त कर दिया गया l घर आने के बाद दिल की बाई पास सर्जरी करानी पड़ी, बेटियों की उच्चशिक्षा, आँख की बीमारी और पारिवारिक बोझ के कारण वह अपने मामले को भूल ही गया l दस वर्ष बाद सन दो हजार सोलह में अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से वाद दायर किया लेकिन, 21 दिसंबर, 2016 को दिल का दौरा पड़ने से सैनिक की मृत्यु हो गई पत्नी और बच्चों की आय का जरिया न होने के कारण मुकदमें की पैरवी करना कठिन होते हुए भी वीरांगना पत्नी ने दिवंगत पति की लड़ाई को लड़ने का फैसला किया l सशत्र-बल अधिकरण, लखनऊ की न्यायमूर्ति रवीन्द्र नाथ कक्कड़ (रि०) एवं वाईस एडमिरल अतुल कुमार जैन (रि०) की खण्डपीठ ने मामले सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि दिवंगत सैनिक ने सत्रह साल नौकरी की थी यदि उसे सेवा से बर्खास्त न किया गया होता तो वह पेंशन का हकदार होता, लेकिन उसे कोर्ट मार्शल ने कठोर दण्ड दिया जो अपराध की प्रकृति से मेल नहीं खाते इसलिए, सैनिक की बर्खास्तगी को डिस्चार्ज में किया जाता है और भारत सरकार को आदेशित किया जाता है कि चार महीने के अंदर कार्यवाही को पूर्ण करे और, पत्नी को उसके पति के सभी लाभ प्रदान करें यदि इसका अनुपालन नियत समय में नहीं किया जाता तो वादिनी आठ प्रतिशत ब्याज की भी हक़दार होगी l