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कीबोर्ड के अक्षर ABCD न होकर, QWERTY फॉर्मेट में ही क्यों होते हैं?

जब आप कीबोर्ड पर टाइप करते हैं तो आपको कई बार अक्षर ढूंढने में दिक्कत होती है. बार-बार देखना पड़ता है A कहां पर है, C कहां पर. कभी कभार आप सोचते हैं कि काश इसकी कीज़ भी ABCD लाइनवार से लगी होती, तो टाइप करने में काफी आसान हो जाता. लेकिन आप की ये सोच गलत है. आज हम आपको बताएंगे कि कीबोर्ड में ABCD एक साथ क्यों नहीं होते हैं?

पहले ABCD एक साथ ही थी टाइपराइटर में

जब क्रिस्टोफर लैथम शोल्स ने पहला टाइपराइटर बनाया था, तो सभी अक्षर सीधे ही लगे थे यानी A के बाद B,C,D ही आता था. साल 1868 में बने उस अल्फाबेटिक टाइपराइटर में काफी कमियाँ थी जिसकी वजह से वो कारगर सिद्ध नही हुआ.

क्रिस्टोफर लैथम शोल्स ने जो अल्फाबेटिक टाइपराइटर बनाया था उसमें बहुत बार अक्षर आपस में उलझ जाते थे. अगर आपने कभी टाइपराइटर इस्तेमाल किया है तो आप समझ सकते है की दो अक्षर एक साथ दबने पर दोनों आपस में उलझ जाते है. अल्फाबेटिक टाइपराइटर में एक समस्या यह थी कि अक्षर आपस में उलझ जाते थे.अल्फाबेटिकल  होने से टाइपिंग में गलतियाँ भी ज्यादा होती थी और उस समय कीबोर्ड में बैकस्पेस का बटन भी नही था. अल्फाबेटिक टाइपराइटर पर स्पीड भी काफी कम आती थी और गलतियों की संभवनाए भी ज्यादा होती थी.

गलतियों से बचने के लिये QWERTY का इस्तेमाल

1873 में Christopher Latham Sholes ने गलतियों से बचने और स्पीड को बढ़ाने के लिए सभी बटनों को व्यवस्थित किया. जैसे हम टाइपिंग में सबसे ज्यादा E और I का उपयोग करते हैं, तो उसे बोर्ड की पहली लाइन में और हमारी तर्जनी ऊँगली पर रखा गया यानी E और I हाथों की बीच की ऊँगली पर रखा गया. और इस तरह ज्यादा इस्तेमाल होने वाले शब्दों को बीच में और कम इस्तेमाल होने वाले शब्दों को जैसे Z और X को कोने में रखा गया.

‘रेमिंग्टन एंड संस’ नाम

कीबोर्ड के इस नए ढांचे को क्वर्टी नाम दिया गया क्योंकि इसके शुरुवाती अक्षर QWERTY है. हालाकि बाद में इसे ‘रेमिंग्टन एंड संस’ नाम दिया गया. क्योंकि इस कंपनी ने क्रिस्टोफर लैथम शोल्स के क्वर्टी मॉडल को ख़रीदा था, लेकिन लोगो के जुबान पर आज भी QWERTY ही प्रसिद्ध है.

कंप्यूटर के आने पर टाइपराइटर की तमाम समस्याएँ जैसे बटन का उलझना, टाइपिंग स्पीड और बैकस्पेस जैसी समस्याए सुलझ गई थी लेकिन फिर भी कंप्यूटर में QWERTY को अपनाया गया. इसका न्यूयॉर्क की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में मानव व्यवहार और कार्यदक्षता पर अध्ययन कर रहे प्रोफेसर ऐलेन हेज ने हमारी आदत को बताया. उन्होंने कहा की QWERTY कीबोर्ड हमारी आदत में शुमार हो गया है जिसे हम बदलना नही चाहते. इसलिए कंप्यूटर आने के बावजूद हमने टाइपराइटर के QWERTY कीबोर्ड को अपना लिया.