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नाटक मुक्तिधाम से दिया नैतिक मूल्यों को ग्रहण करने का संदेश

सिरसा

विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य में हरियाणा कला परिषद, हिसार मंडल के
तत्वावधान में राजकीय नैशनल महाविद्यालय, सिरसा एवं केएल थियेटर सिरसा के संयुक्त संयोजन में दो
दिवसीय नाटक महोत्सव का आयोजन स्थानीय राजकीय नैशनल महाविद्यालय, सिरसा के सभागार में किया
गया। जिसमें प्रथम दिन केएल थियेटर के कलाकारों द्वारा नाटक मिट्टी दा बावा का मंचन किया गया। जिसमें
राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालयए रतिया, फतेहाबाद के प्राचार्य डा. रविंद्र पुरी ने बतौर मुख्यातिथि के
रूप में शिरकत की। केएल थियेटर के कलाकारों ने इस नाटक के माध्यम से सन 1947 में हुए बंटवारे के दर्द को
बखूबी दिखाया गया। जो कि आज भी हिंदुस्तान से पाकिस्तान और पाकिस्तान से हिंदुस्तान आने वाले लोगों के
दिलों में जिंदा है। विभाजन के उस दर्दनाक मंजर को भूल पाना संभव नहीं है। इसके साथ ही विभिन्न दृश्यों के
माध्यम से धर्म और जातपात को भुलाकर आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने का संदेश दिया गया। नाटक मंचन के
उपरांत मुख्यातिथि डा. रविन्द्र पुरी ने नाटक के प्रत्येक पात्र के अभियन और कर्ण लढा के निर्देशन की सराहना


करते हुए कहा कि कर्ण लढा इसी महाविद्यालय के पूर्व छात्र हैं और वो अपने शिक्षा काल में भी बहुत ही बेहतर
अभिनय और निर्देशन करते थे। आज वो अकेले नहीं, बल्कि एक संस्थान, केएल थियेटर, सिरसा के निदेशक के
रूप में कार्य कर रहे हैं, जिसमें वो भावी पीढ़ी को कला एवं संस्कृति से जोडऩे का पूरा प्रयास कर रहे हैं। केएल
थियेटर आज सिरसा ही नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र में कला एवं संस्कृति के उत्थान में बेहतरीन कार्य कर कर रहा है।
नाटक महोत्सव के दूसरे दिन राजकीय नैशनल महाविद्यालय, सिरसा के थिएटर क्लब के विद्यार्थियों द्वारा कर्ण
लढा के निर्देशन में नाटक मुक्तिधाम का मंचन हुआ। इस दौरान राजकीय नैशनल महाविद्यालय, सिरसा के
प्राचार्य डा. संदीप गोयल ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। कलाकारों ने नाटक मुक्तिधाम के माध्यम से मौजूदा
सभी दर्शकों को सन्देश दिया कि आज हम पैसे कमाने की भागदौड़ में इतने गुम हो चुके हैं कि रिश्ते नातों को
लगभग दरकिनार कर दिया है। और सक्षम होने के बावजूद भी अपने बूढ़े मां-बाप को अपने साथ नहीं रखते,
जबकि मां-बाप अपने एक से ज्यादा बच्चों को अपने सीने से लगाकर पालते है। जब मां-बाप का औलाद से पहले

मरना तय ही है, फिर भी हम उन्हें मुक्तिधाम जैसे वृद्ध आश्रमों में अकेला छोडऩे पर मजबूर क्यों हैं? इस नाटक
के माध्यम से आज की भावी पीढ़ी को अपने जीवन में नैतिक मूल्यों को परिपूर्ण रूप से ग्रहण करने और समाज को
एक सकारात्मक बदलाव की तरफ  ले जाने का संदेश दिया। मुख्यातिथि डा. संदीप गोयल ने नाटक के सभी
कलाकारों को बधाई दी और निर्देशक कर्ण लढा को विशेष तौर से बधाई देते हुए कहा कि आप जैसे युवा होनहार
कलाकार की समाज को विशेष जरूरत है, ताकि समाज को अच्छी और सकारात्मक दिशा दी जा सके।