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मौलाना कर रहे थे हथियारों संग लखनऊ में ट्रेनिंग कैम्प की तैयारी, इस लड़की ने उड़ा दिए मौलाना के होश

“बोल जय श्री राम , जय हनुमान ” यादें ताजा हैं। इन नारों से शुरू हुई कहानी 24 जून 2019 को जमशेदपुर के टाटा मैन हॉस्पिटल में 24 साल के तबरेज़ अंसारी की मौत पर खत्म हुई। सियासी मौहाल गरम रहा और नियम में बदलाव की बातें जम कर हुई। पिछले कई सालों से नाम बदल रहे है लेकिन हर पीड़ित के साथ मोब लिंचिंग की घटना एक जैसी होती दिख रही हैं। अधिकतर शिकार पिछड़े वर्ग से पाए गए हैं। भावनाओं में बहती भीड़ कानून हाथ में लेने में माहिर हो गई हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने महीने की 26 तारीख को मुस्लिम वर्ग के लिए मॉब लिंचिंग से बचाव पर ट्रेनिंग कैंप का आयोजन करने की घोषणा की थी। इस ट्रेनिंग कैंप में काफी तादात में मुस्लिम वर्ग के आने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन इसे पहले ही शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के मंसूबों पर सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता शुभी खान ने पानी फेर दिया। दरअसल लखनऊ के चौक थाने में सोमवार की दोपहर तब तहलका मच गया जब सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता शुभी खान मौलाना कल्बे जव्वाद के खिलाफ एफआईआर कराने पहुंची।

एफआईआर करने के मुख्य बिंदु

मेहमूद प्राचा और मौलाना कल्बे जव्वाद ने हाल ही मुस्लिम कमिटी के साथ एक कांफ्रेंस की थी। शुभी के मुताबिक इस कांफ्रेंस में मुस्लिम समुदाय को भड़काने का काम हुआ हैं। उनका कहना है कि कांफ्रेंस में जिस ट्रेनिंग कैंप को लखनऊ में 26 तारीख को कराने की बाद की गई हैं वो कानून के खिलाफ हैं।
उनके तरीके आंतकवाद को बढ़ावा दे सकते हैं। एक उदाहरण देते हुए शुभी ने कहा कि मान लीजिए 135 करोड़ के इस देश में अगर 135 मॉब लिंचिंग मामले सामने आते हैं और एक मॉब लिंचिंग में 100 की भीड़ हमला करती हैं। यानि कुल 135 मामलों में 100 हमलावरों के हिसाब से 13500 दोषी है। यानि इन 13500 दोषियों के लिए बेबुनियाद ट्रेनिंग कैंप की क्या जरुरत। यह कानून को हाथ में लेना हैं और आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसा हैं।

अब तक इस मामले में

शुभी ने चौक थाने में मेहमूद प्राचा और मौलाना कल्बे जव्वाद के अलावा जिन जिन लोगों ने कांफ्रेंस में प्रखर होकर बोला सब पर एफआईआर करने की मांग की हैं। शुभी का कहना हैं कि सेल्फ डिफेन्स का लॉ कभी यह नहीं कहता की आप पहले से अपने साथ होने वाली घटना को मान आप हथियार रखना शुरू कर दे। शुभी ने इनके ऊपर 153 A, 5051B IPC, 5051C IPC ,124 A, 34 IPC धाराएं लगाने की मांग की हैं। उनका कहना हैं सेल्फ डिफेन्स कानून डिफेंसिव लॉ है न की न कि ऑफेंसिव।

उत्तर प्रदेश में मॉब लिंचिंग का अर्धशतक

2012 से 2019 के बीच अगर उत्तर प्रदेश में मॉब लॉंचिंग की घटनाओं के आकड़े देखे, तो अब तक इस सूची में 50 पीड़ितों के नाम जुड़ गए है। 50 में से 11 की मौत हुई हैं और वहीं 25 मामले काफी बड़े हमले थे। उस समय उत्तर प्रदेश के कानून पैनल के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस ऐ एन मित्तल ने 128 पन्नों की एक रिपोर्ट हाल ही में सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को सौंपी। 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बताए गए बदलावों को ध्यान में रखते हुए इस रिपोर्ट को तैयार किया गया। इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश कुछ बड़ी घटनाओं का जिक्र किया गया जैसे साल 2015 में सपा के कार्यकाल के दौरान मोहम्मद अखलाक को प्रदेश के दादरी में बीफ रखने के संदेह में मोब लिंचिंग का शिकार होना पड़ा। इस मामले में अखलाक को अपनी जान गवानी पड़ी। इस रिपोर्ट में बुलंदशहर की एक घटना का भी जिक्र हुआ है। मैदान में पशुओं के शव मिलने के बाद हिंदू समूह और पुलिस कर्मियों के बीच मुठभेड़ हुई। जिसमें इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की मृत्यु हो गई। इस रिपोर्ट में फर्रुखाबाद, उन्नाव,कानपुर, हापुर और मुज़्ज़फरनगर जैसे जिलों का जिक्र किया गया। साफ तौर पर लिखा गया कि लोग अब पुलिस को भी अपना दुश्मन मानने लगे हैं। ऐसे में इस पर जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने चाहिए। पैनल के मुताबिक मौजूदा नियम मोब लिंचिंग के मामलों पर रोक लगाने के लिए काफी नहीं हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट में मोब लिंचिंग के आरोपियों पर सात साल से लेकर उम्र कैद तक कि सजा की मांग करी गई हैं।