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आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

जयपुर पुलिस के आरक्षी नेत्रेश के जज्बे को सलाम

करौली में शनिवार को उपद्रव और आगजनी के दौरान दुकानों के साथ मकान में भी आग लगा दी गई थी। दोनों तरफ लाख की दुकानों के बीच एक मकान ‘लाक्षागृह’ बन धू-धू जल रहा था। उसमें मासूम बच्चे के साथ फंसी उसकी मां और 2 अन्य महिलाएं जीने की उम्मीद ही खो चुके थे। लेकिन करौली कोतवाली थाने के कांस्टेबल 31 वर्षीय नेत्रेश शर्मा देवदूत बनकर आए। उन्होंने अपनी जान पर खेलकर चारों की जिंदगी बचाई। (2013 बैच के कांस्टेबल नेत्रेश शर्मा की हमेशा सिग्मा ड्यूटी पर तैनातगी रहती है। वह वर्ष 2018 से करौली कोतवाली थाने में तैनात हैं)

जांबाज कांस्टेबल ने कहा- चंद सेकंड में फैसला किया, क्योंकि फर्ज सबसे ऊपर
मैं सिग्मा गाड़ी पर गश्त पर था। नव संवत्सर पर बाइक रैली दोपहर बाद 3:30 बजे रवाना हुई थी। करीब 5 बजे रैली हटवाड़ा बाजार पहुंची थी। मैं 200 मीटर आगे गणेश गेट पर था। इस दाैरान सूचना आई कि एसएचओ साहब की गाड़ी में दो-तीन घायलों को लेकर गए हैं और हटवाड़ा बाजार में पथराव हो गया है। मैं सिग्मा से हटवाड़ा बाजार पहुंचा तो वहां भीषण आगजनी हो रही थी।

एक दुकान के बाहर दो-तीन घायल बैठे हुए थे। उनके सिर फूटे हुए थे। उन्होंेने मुझे रोका। मैं उन्हें हटवाड़ा बाजार से सिग्मा पर बैठाकर एक किलोमीटर दूर हॉस्पिटल लेकर गया। वहां से वापस हटवाड़ा बाजार पहुंचा। इसके बाद फूटाकोट चौराहे पर पहुंचा तो भीषण आगजनी हो रही थी। दुकानें धू-धू कर जल रही थीं। इस बीच वहां एक मकान को देखा तो दिल दहल गया।

मकान के दोनों ओर लाख की दुकानें थीं। मकान के तीन तरफ से आग की लपटें निकल रही थीं। अंदर से 3 महिलाओं और एक बच्चे के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। लपटों से घिरी और चिल्ला रही एक महिला की गोद में 4 साल का बच्चा था। आग की लपटों से बचाने के लिए महिला ने उसे कपड़े में लपेट रखा था। चीख-पुकार के बीच आग की लपटों को देखकर मैं एकबारगी पशोपेश में पड़ गया।

‘मकान में बच्चे-महिलाओं के चेहरे पर जो दशहत थी… कभी भुला नहीं सकता’
पसोपेश से अगले ही पल मैं उबरा और सिग्मा गाड़ी खड़ी की। दौड़कर आग की लपटों के बीच से होते हुए मकान में घुस गया। क्योंकि फर्ज तो सबसे ऊपर था ही…4 जानें बचाने के आगे खुद की जान की परवाह या कीमत भी कहां बाकी रह गई थी! मकान के भीतर पहंुचा तो तीनों महिलाओं और बच्चे का रो-रोकर बुरा हाल था। मैंने उनका हौसला बढ़ाया।

कहा कि कुछ नहीं होगा, सब सुरक्षित बाहर निकल जाएंगे। इसके बाद बच्चे को मैंने अपनी गोद में लिया। महिलाओं से कहा कि आप सभी तेजी से मेरे पीछे दौड़कर बाहर आएं। मकान से बाहर निकलकर करीब 20 मीटर दूर आए और बच्चे को संभाला तो वह पीछे आ रही अपनी मां की ओर दौड़ पड़ा।

  • मेरी आंखों के सामने चार जिंदगियां खाक होने को थीं। अपनी जान भले ही चली जाती, उन्हें किसी भी कीमत पर बचाना मेरा फर्ज था।