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‘भारत रत्न’ से सम्मानित होने वाले पांचवें राष्ट्रपति बने प्रणव मुखर्जी

 

 

 

नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। मुखर्जी यह सम्मान पाने वाले देश के पांचवें राष्ट्रपति हैं। इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. जाकिर हुसैन और वीवी गिरि को भी भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।

राष्ट्रपति बनने से पहले प्रणव मुखर्जी लगभग पांच दशक तक कांग्रेस में थे। गत वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नागपुर स्थित मुख्यालय में आयोजित तृतीय वर्ष प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में प्रणव के शामिल होने के बाद काफी विवाद हुआ था। इस पर उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी तक ने आपत्ति जताई थी। हालांकि आज राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित अलंकरण समारोह में शर्मिष्ठा मुखर्जी भी मौजूद थीं।

जीवन परिचय
प्रणव मुखर्जी एक उत्कृष्ट राजनेता हैं, जिन्होंने पांच दशक से अधिक समय के अपने लंबे राजनीतिक जीवन में विभिन्न पदों पर रहकर राष्ट्र की सेवा की और देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पर उनका निर्वाचन इसकी पराकाष्ठा थी। उन्होंने भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में 25 जुलाई 2012 से 24 जुलाई 2017 तक कार्य किया।

साधारण पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले प्रणव मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को स्वतंत्रता सेनानियों कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी के पुत्र के रूप में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के छोटे से गांव मिराती में हुआ था।

मुखर्जी ने इतिहास और राजनीति विज्ञान में दो मास्टर डिग्री के साथ-साथ कोलकाता विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने कॉलेज के शिक्षक और पत्रकार के रूप में अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत की। राष्ट्रीय आंदोलन में अपने पिता के योगदान से प्रेरित होकर मुखर्जी भारतीय संसद के उच्च सदन (राज्यसभा) के लिए चुने जाने के बाद 1969 में पूर्णकालिक सार्वजनिक जीवन के प्रति समर्पित हो गए।

मुखर्जी देश के विदेश, रक्षा, वाणिज्य और वित्त मंत्री के रूप में अलग-अलग समय पर सेवा करने की शानदार उपलब्धि के साथ शासन में अद्वितीय अनुभव रखने वाले व्यक्ति हैं। वे 1969 से पांच बार राज्यसभा के लिए और 2004 और 2009 में दो बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और उसके बाद वे 2012 में राष्ट्रपति बने। वे पार्टी की नीति निर्माण समिति कांग्रेस कार्यकारिणी के 23 वर्षों तक सदस्य रहे।

मुखर्जी ने स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अनुभवी सानिध्य में रहकर राजनीतिक जीवन में तेजी से प्रगति की। उन्हें फरवरी 1973 से अक्टूबर 1974 तक औद्योगिक विकास, पोत परिवहन और परिवहन उप मंत्री बनाया गया और उसके बाद 1974-75 के दौरान वित्त राज्य मंत्री तथा 1975-77 के दौरान राजस्व और बैंकिंग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया। तत्पश्चात उन्होंने 1980-82 के दौरान मंत्रिमंडल में वाणिज्य तथा इस्पात और खान मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1982 में पहली बार भारत के वित्त मंत्री के रूप में पदभार संभाला और 1980 से 1985 के दौरान राज्यसभा के नेता रहे। बाद में 1991 से 1996 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया और साथ ही 1993 से 1995 तक वाणिज्य मंत्री, 1995 से 1996 तक विदेश मंत्री रहे। उन्होंने 2004 से 2006 तक रक्षा मंत्री और 2006 से 2009 तक एक बार पुन: विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 2009 से 2012 तक दोबारा वित्त मंत्री तथा 2004 से 2012 तक, जब उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया, लोकसभा के नेता बने रहे।

मुखर्जी ने 2004-2012 की अवधि के दौरान, 95 से अधिक मंत्री समूह/ अधिकार प्राप्त मंत्री समूह (जीओएम/ईजीओएम) के अध्यक्ष के रूप में प्रशासनिक सुधार, सूचना का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार, यूआईडीएआई, आधार आदि की स्थापना जैसे कई मुद्दों पर सरकार के महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सत्तर और अस्सी के दशक में उन्होंने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (1975) और भारत के आयात-निर्यात बैंक के साथ-साथ नाबार्ड-राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (1981-82) की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने ग्रामीण इलाकों और विदेशों, खास तौर से खाड़ी क्षेत्र में राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखाओं के बड़ी संख्या में विस्तार के लिए अथक कार्य किया, इससे कानूनी रूप से भेजे जाने वाले धन की मात्रा में काफी वृद्धि हुई। मुखर्जी ने पंचवर्षीय योजनाओं के लिए 1991 में केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे के लिए एक संशोधित फार्मूला भी तैयार किया जिसे गाडगिल-मुखर्जी फार्मूला के नाम से जाना गया।

मुखर्जी के पास व्यापक राजनीतिक अनुभव है और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक के गवर्नर के बोर्ड में कार्य किया है। उन्होंने 1982, 1983 और 1984 में राष्ट्रमंडल वित्त मंत्रियों के सम्मेलनों, 1994, 1995, 2005, 2006, 2007 और 2008 में संयुक्त राष्ट्र महासभा, 1995 में ऑकलैंड में राष्ट्रमंडल सरकार प्रमुखों की शिखर बैठक, 1995 में कार्टाजेना में गुटनिरपेक्ष विदेश मंत्री सम्मेलन और 1995 में बांडुंग में अफ्रीकी एशियाई सम्मेलन की 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडलों का नेतृत्व किया है ।

एक प्रखर वक्ता और विद्वान मुखर्जी की बौद्धिक क्षमता और राजनीतिक कौशल के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों, वित्तीय मामलों और संसदीय प्रक्रिया के उत्कृष्ट ज्ञान की अत्यंत सराहना की जाती है। भारत के जीवंत बहुदलीय लोकतंत्र के प्रमुख अंग विविध राजनीतिक दलों के बीच सर्वसम्मति बनाने की योग्यता के कारण जटिल राष्ट्रीय मुद्दों पर आम सहमति बनाने में उनकी भूमिका प्रशंसनीय रही है।