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अतार्किक निर्णय के आधार पर दिव्यांगता पेंशन देने से इंकार नहीं कर सकती सरकार मनमानी तरीके और स्वविवेक को आधार बनाकर किसी के अधिकार का अतिक्रमण नहीं कर सकती सरकार कोई भी निर्णय स्थापित विधि के बाहर जाकर नहीं किया जा सकता :विजय कुमार पाण्डेय

लखनऊ,नौकरी के दौरान अपनी दाहिनी आँख की रोशनी खोने वाले लखनऊ ने प्रयागराज निवासी संजय कुमार पटेल के मामले को सेना से संबंधित होना मानते हुए सशत्र-बल अधिकरण, लखनऊ ने पचास प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन दिए जाने का फैसला सुनाया जिसमें, याची का पक्ष अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने रखा। मामला यह था कि याची वर्ष 2002 में सेना की कुमायूं रेजिमेंट में भर्ती हुआ जो, दुर्गम इलाकों में युद्ध के लिए महारत रखती है और, याची ने हर भौगोलिक क्षेत्र में देश की सीमाओं की रक्षा में तत्पर रहा इसी बीच, याची की दाहिनी आँख खराब हो गई। सेना द्वारा उसका मेडिकल कराने पर पाया गया कि यह आँख आजीवन ठीक नहीं हो सकती इसलिए इस पर मेडिकल बोर्ड का गठन करके फैसला लिया जाए। सेना द्वारा एक मेडिकल बोर्ड का गठन करके पीड़ित को उसके सामने प्रस्तुत किया गया जिसमें, कई दिन के परीक्षण के बाद मेडिकल बोर्ड ने अपनी राय दी कि सैनिक की आँख बीस प्रतिशत तक खराब हो चुकी है जो, आजीवन ठीक नहीं हो सकती लेकिन, इससे सेना की नौकरी का कोई संबंध नहीं है इसलिए, याची दिव्यांगता पेंशन के बगैर डिस्चार्ज किए जाने योग्य है। मेडिकल बोर्ड की राय को आधार बनाकर याची को बगैर दियांगता पेंशन वर्ष 2019 में बगैर दिव्यांगता पेंशन दिए घर भेज दिया, जिसके खिलाफ याची ने भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय सहित सेना के कई उच्च-अधिकारियों से अपील करके गुहार लगाई कि उसके साथ नाइंसाफी हुई है लेकिन, उसकी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई।

उसके बाद उसने अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से सेना कोर्ट लखनऊ में 2022 में वाद दायर किया, यहाँ भी भारत सरकार द्वारा उसकी याचना का जबर्दस्त विरोध किया गया लेकिन, न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव (रि०) एवं वाईस एडमिरल अभय रघुनाथ कार्वे (रि०) की खण्ड-पीठ ने मेडिकल बोर्ड द्वारा दी गई राय को सिरे से खारिज करते हुए अपना फैंसला सुनाते हुए कहा कि, मेडिकल बोर्ड की ओपिनियन से कोई भी समझदार व्यक्ति सहमत नहीं हो सकता क्योंकि, इतने लंबे समय बाद होने वाली बीमारी को बगैर कोई तार्किक कारण बताए निराधार रूप से यह कह देना कि इसका संबंध सर्विस से नहीं है स्वीकार नहीं किया जा सकता। बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जो भी फैसले रक्षा-मंत्रालय द्वारा लिए गए हैं, गलत हैं क्योंकि, इस तरह के फैसले स्थापित नियम और विधि के तहत लिए जाने चाहिए थे, “विधि के शासन” में कानून को सर्वोच्चता प्राप्त है न कि मनमानी तरीके से स्वविवेक से लिए गए निर्णय, बेंच ने कहा मेडिकल बोर्ड की राय और उसके संदर्भ में पारित किए गए सभी आदेश खारिज करने योग्य हैं इसलिए, पेंशन नकारने वाले भारत सरकार के सभी आदेश दरकिनार किए जाते हैं और, सरकार को आदेशित किया जाता है कि वह याची को चार महीने के अंदर पचास प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन दे यदि, सरकार नियत समय के अंदर आदेश का पालन नहीं करती तो उसे याची को आठ प्रतिशत ब्याज भी देना होगा ।