जेएनयू और डीयू दोनों ही देश की नामी यूनिवर्सिटी हैं. दोनों के ही छात्र संघ चुनाव में देशभर से आए युवाओं की भागीदारी रहती है. लेकिन दोनों में कोई समानता नहीं है. दोनों के चुनाव प्रचार से लेकर रणनीति और मुद्दों में जमीन आसमान का फर्क है.
आइए हम आपको बताते हैं दोनों प्रमुख यूनिवर्सिटीज के छात्र संघ चुनावों में क्या हैं आठ बड़े अंतर.
प्रेजिडेंशियल डिबेट
छात्र संघ चुनाव में जेएनयूएसयू और डूसू चुनावों में अध्यक्ष का चुनाव होता है लेकिन प्रेजिडेंशियल डिबेट जेएनयूएसयू चुनावों की यूएसपी मानी जाती है. यहां तक कि जेएनयू में इस डिबेट को सुनने के लिए बाहर से भी लोग पहुंचते हैं.
इस डिबेट में हर पार्टी का अध्यक्ष पद का उम्मीदवार अपना-अपना पक्ष रखता है. बड़े मुद्दों पर भाषण होते हैं. इस डिबेट में राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दे रखे जाते हैं. ऐसी कोई भी डिबेट डीयू के चुनावों में नहीं होती
डीयूएसयू छात्र संघ चुनाव के लिए क्लासों में जाकर प्रचार करते छात्र नेता
हॉस्टलर और डे-स्कॉलर की प्रतिभागिता
जेएनयू में हॉस्टलर्स की प्रतिभागिता चुनावों में ज्यादा रहती है. चूंकि वहां ज्यादातर छात्र हॉस्टल में रहते हैं, लिहाजा कक्षाओं के अलावा हॉस्टल में भी छात्र संघ चुनाव के दौरान चुनावी माहौल रहता है.
इसके उलट डीयू में डे-स्कॉलर्स ज्यादा हैं. ऐसे में चुनाव, प्रचार, अभियान की जिम्मेदारी से लेकर सहभागिता तक डे स्कॉलर्स ज्यादा होते हैं. उम्मीदवार भी ज्यादातर डे-स्कॉलर्स ही होते हैं.
दिन और रात में चुनाव प्रचार
डीयू में अधिकांश चुनाव प्रचार कॉलेज टाइम में और दिन में होता है. रोजाना कैंपस और कॉलेजों में आने वाले छात्र चुनाव प्रचार की कमान संभालते हैं और छात्रों से संपर्क साधते हैं. किसी भी आम चुनाव की तर्ज पर यहां प्रचार होता है.
जबकि जेएनयू में अधिकांश चुनाव प्रचार रात को होता है. यहां तक कि जेएनयू का नाइट कैंपेन काफी लोकप्रिय भी है. विभिन्न दलों के छात्र नेता हॉस्टलों में जाकर छात्रों से संपर्क साधते हैं. रात में ही रणनीतियां तय होती हैं.
चुनाव प्रचार के दौरान छात्र नेताओं को सुनते छात्र
चुनावी मुद्दे
दोनों यूनिवर्सिटी चुनावों के मुद्दों में जमीन-आसमान का फर्क होता है. डीयू में चुनाव उम्मीदवार छात्र कैंपस, हॉस्टल और कॉलेज की समस्याओं को उठाते हैं. पीने के पानी से लेकर परिवहन तक की सुविधा को सुधारने का वादा करते हैं.
इससे अलग जेएनयू में प्रेजिडेंशियल डिबेट के अलावा भी राष्ट्रीय समस्याओं, अंतरराष्ट्रीय संबंधों, समाधानों, केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों, विदेश नीतियों पर भाषणों का दौर चलता है. चुनाव प्रचार में भी यही मुद्दे हावी रहते हैं.
राजनैतिक पार्टियों का दखल
डीयू में यूनिवर्सिटी स्तर के मुद्दे होते हैं इसके बावजूद कभी-कभी बड़े नेता भी कैंपस में आ जाते हैं. एबीवीपी के साथ भाजपा नेता, एनएसयूआई के साथ कांग्रेस के राजनेता और आप की यूथ विंग के साथ भी कभी-कभी कोई नेता पहुंचता है. वहीं बड़ी पार्टियों का अपने-अपने विंग को पूरा समर्थन रहता है.
जेएनयू में भी राजनैतिक पार्टियों का दखल रहता है. चुनावों के दौरान अक्सर जेएनयू के पूर्व छात्र और विभिन्न पार्टियों के नेता वहां पहुंचते हैं और समर्थन देते हैं. लेकिन इसके बावजूद पूरा दारोमदार प्रत्याशी पर रहता है.
जेएनयू और डीयू में छात्र संघ चुनाव के लिए प्रचार अभियान जोरों से चल रहा है
प्रचार अभियान पर खर्च और तरीका
डीयू में चुनाव प्रचार अभियान में जबरदस्त पैसे खर्च किए जाते हैं. चुनाव प्रचार में सेलिब्रिटी बुलाने से लेकर कंसर्ट कराने, रॉक बैंड बुलाने, फिल्में दिखाने, वाटर पार्क ले जाने की गतिविधियां भी होती हैं. छात्रों की पार्टियां चलती हैं. बैनर, पोस्टर और विज्ञापनों पर खर्च होता है.
जबकि जेएनयू में बेहद शांत तरीके से और बौद्धिकता के साथ चुनाव प्रचार होता है. ये लोग पोस्टर, बैनर, वन टू-वन बात करके और भाषणों के माध्यम से प्रचार करते हैं. इसमें डीयू की अपेक्षा पैसा कम खर्च होता है.
किस पार्टी का दबदबा
आमतौर पर डीयू में जहां एबीवीपी और एनएसयूआई में मुकाबला रहता है. इन दोनों में से ही कोई विजेता निकलकर आता है.
जबकि जेएनयू में वामपंथी विचारधारा का समर्थन ज्यादा होने के कारण आईसा जैसे संगठनों की स्थिति मजबूत रहती है. हालांकि दोनों में ही कभी-कभी छात्र संघ चुनावों के परिणाम इससे अलग भी होते हैं.
पदाधिकारी
डीयू में दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन इलेक्शन के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, सहसचिव और कोषाध्यक्ष के अलावा विभिन्न कॉलेजों के अलग-अलग पदाधिकारी होते हैं.
जबकि जेएनयू में चार प्रमुख पदों के अलावा विभिन्न विषय विभाग प्रमुख चुना जाता है.