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ISRO ने रचा इतिहास, छात्रों के सहयोग से 30 दिनों में बनाकर लॉन्च किया हल्का सैटेलाइट

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने इस साल की शुरुआत जबरदस्त तरीके से की है। मिशन-2019 के तहत इसरो ने महज 30 दिन में पीएसएलवी सीरीज का नया रॉकेट बनाकर उसे सफलतापूर्वक उड़ाया। अंतरिक्ष में सफलता का प्रतीक बन चुकी इसरो ने बृहस्पतिवार देर रात को अपने मिशन-2019 की शानदार शुरुआत की। नए साल में चंद्रयान-2 समेत कई अहम अभियानों की तैयारी में जुटे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अपने नए सैटेलाइट लांच व्हीकल पीएसएलवी-सी44 के जरिए माइक्रोसेट-आर सैटेलाइट को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया।

आपको बता दें इमेजिंग सैटेलाइट माइक्रोसेट-आर खासतौर पर सेना के लिए तैयार की गई है। इसरो के मुताबिक, पोलर रॉकेट पीएसएलवीसी-44 ने 28 घंटे लंबे काउंटडाउन के बाद रात में करीब 11.37 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लांचपैड से उड़ान भरी। चार चरण ईंधन वाले पीएसएलवी-सी44 ने अपनी पहली ही उड़ान में 740 किलोग्राम वजन वाली माइक्रोसेट-आर को महज 13 मिनट 30 सेकंड बाद कक्षा में स्थापित कर दिया।

पीएसएलवी-सी44 ने माइक्रोसेट-आर के साथ भेजी गई कॉलेज छात्रों की बनाई कलामसेट सैटेलाइट को भी तकरीबन 90 मिनट बाद अपने चौथे चरण के ईंधन की बदौलत 450 किलोमीटर दूर स्थित और ज्यादा ऊंची कक्षा में स्थापित किया। इस मौके पर इसरो के पूर्व चेयरमैन कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन और एएस किरण कुमार भी मिशन कंट्रोल सेंटर में मौजूद थे।

इसरो ने माइक्रोसेट-आर को अंतरिक्ष में पहुंचाने वाले पीएसएलवी-सी44 का निर्माण करने में भी एक नई उपलब्धि हासिल कर ली। बृहस्पतिवार को पहली उड़ान भरने वाले इस चार चरण ईंधन वाले रॉकेट का निर्माण महज 30 दिन के अंदर किया गया, जबकि इससे पहले तैयार किए गए पीएसएलवी सीरीज के सभी रॉकेट बनाने में लंबा समय लगा था।

44 मीटर लंबे पीएसएलवी-सी44 रॉकेट पर पहली बार इसरो ने महज दो स्ट्रेप-ऑन प्रणाली (बूस्टर) लगाई थीं, जबकि आमतौर पर पीएसएलवी सीरीज के रॉकेट छह स्ट्रेप-ऑन बूस्टर के साथ उड़ान भरते रहे हैं या उन पर कोई भी बूस्टर नहीं लगाया जाता था।

इसरो की तरफ से बताया गया कि माइक्रोसेट-आर को करीब 274 किलोमीटर दूर स्थापित करते हुए पृथ्वी की सबसे निचली कक्षा में सैटेलाइट भेजने का कारनामा भी संगठन ने पहली बार किया। माइक्रोसेट-आर के साथ उड़ान भरने वाली कलामसेट सैटेलाइट आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बेहद उपयोगी साबित होने वाली है। कुछ कॉलेज छात्रों और चेन्नई के एक संगठन स्पेस किड्ज इंडिया के सदस्यों द्वारा महज 12 लाख रुपये में बनी कलामसेट के नाम भी एक रिकॉर्ड दर्ज हो गया।