Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

इमरान ने बढ़ाया जिसका कार्यकाल, वही बना उनके गले की फांस

इस्लामाबादः भारत के कूटनीतिक तमाचे से बेहाल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को घर में भी झटके पर झटके लग रहे हैं। पाकिस्तान की दुनिया में गिरती साख और गर्त में जा रही अर्थव्यवस्था को लेकर जहां विपक्षी दल उनका माखौल उड़ा रहे हैं वहीं इमरान ने जिस आर्मी चीफ का कार्यकाल बढ़ाया, अब वही उनके गले की फांस बन गए हैं। आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को उबारने के लिए अब सेना ने कमान संभाल ली है। ऐसे में एक बार फिर पड़ोसी देश में सैन्य राज आने के संकेत मिलने लगे हैं।

काबिलेगौर है कि पाकिस्तान में पहले से बेहद ताकतवर सेना अब देश को चलाने में और बड़ी भूमिका निभा रही है। पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कारोबारी नेताओं से गोपनीय मुलाकातें कर रहे हैं। पाकिस्तान की वित्तीय राजधानी कराची और रावलपिंडी के सैन्य कार्यालय में ऐसी तीन मुलाकातें हो चुकी हैं।

सूत्रों की मानें तो बाजवा ने कारोबारी नेताओं से अर्थव्यवस्था को सही रास्ते पर ले जाने और विदेशी निवेश बढ़ाने को लेकर गहन चर्चा की। इन बैठकों के तुरंत बाद ही सरकारी अधिकारियों को जल्दबाजी में कई निर्देश भी जारी कर दिए गए। बैठकों के बारे में पूछे जाने पर आर्मी प्रवक्ता ने प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया हालांकि, गुरुवार को बाजवा की कारोबारी नेताओं के साथ मुलाकात के बाद सेना की तरफ से एक बयान जारी किया गया। बाजवा ने बयान में कहा, राष्ट्रीय सुरक्षा अर्थव्यवस्था से करीबी से जुड़ा मुद्दा है और संपन्नता सुरक्षा जरूरतों और आर्थिक वृद्धि के बीच संतुलन की ही प्रक्रिया है।

बता दें कि 1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद से सेना ने कई बार तख्तापलट को अंजाम दिया है। पाक की सेना पर वर्तमान आर्थिक संकट का सीधा असर पड़ा है। वित्तीय वर्ष 2020 में रक्षा खर्च में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। एक दशक से ज्यादा के वक्त में पहली बार ऐसा हुआ था कि सेना के बजट में बढ़ोतरी नहीं हुई।

रक्षा बजट में कटौती ऐसे वक्त में हुई है जब पाक कश्मीर और अफगानिस्तान को लेकर परेशान है। पाकिस्तान में कई कारोबारियों और आर्थिक विश्लेषक आर्मी जनरल की बढ़ती भूमिका का स्वागत कर रहे हैं। वे इमरान खान की पार्टी को सेना की तुलना में अनुभवहीन मानते हैं हालांकि, कई लोगों को ये चिंता सता रही है कि सेना का बढ़ता दखल पाकिस्तान के लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।