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रिटायर होने के बाद भी राम मंदिर पर फैसला सुना सकते हैं चीफ जस्टिस, जानें कैसे

नई दिल्लीः लंबे अरसे से चल रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाशीश रंजन गोगाई काफी गंभीर नजर आ रहे हैं। उन्होंने 18 अक्टूबर से पहले सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है हालांकि उनका कहना है कि तय समय तक यदि सुनवाई पूरी नही होती तो इस पर फैसला देने का चांस लगभग खत्म हो जाएगा लेकिन हम आपको बताएंगे कि कैसे रिटायर होने के बाद भी चीफ जस्टिस इस मामले पर फैसला दे सकते हैं ?

बता दें कि चीफ जस्टिस गोगोई के नेतृत्व वाली 5 न्यायमूर्तियों की संविधा पीठ राम मंदिर मामले की सुनवाई कर रही है और चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद चीफ जस्टिस इस मामले पर न तो सुनवाई कर पाएंगे और न ही फैसला सुना पाएंगे। ऐसे में वह चाहते हैं कि उनके रिटायर होने से पहले मामले की सुनवाई पूरी हो जाए। अब ऐसे में सवाल उठता है कि यदि चीफ जस्टिस के रिटायर होने तक सुनवाई पूरी नही होती तो इस पर फैसला कौन सुनाएगा और क्या इस पर फैसला सुनाने के लिए उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है ?

रिटायर होने के बाद भी फैसला सुना सकते हैं चीफ जस्टिस

आपको बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 128 में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति की सहमति से रिटायर न्यायमूर्ति को किसी मामले की सुनवाई करने का अधिकार दिया जा सकता है, लेकिन ऐसे न्यायमूर्ति को सुप्रीम कोर्ट के दूसरे न्यायमूर्तियों की तरह अन्य मामलों की सुनवाई करने का अधिकार नहीं होगा।

इसका मतलब यह हुआ कि अगर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई लंबी चलती है, तो राष्ट्रपति की सहमति से चीफ जस्टिस रंजन गोगोई आगे भी मामले की सुनवाई कर सकते हैं। संविधान में इसका प्रावधान किया गया है हालांकि रंजन गोगोई को सुप्रीम कोर्ट के किसी दूसरे न्यायमूर्ति या चीफ जस्टिस की तरह अधिकार नहीं होंगे। वो सिर्फ राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की ही सुनवाई कर पाएंगे और फैसला सुना पाएंगे।

काबिलेगौर है कि अभी तक यह परंपरा रही है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों की जो बेंच मामले की सुनवाई करती है, वही उस पर फैसला सुनाती है। अगर उस बेंच के न्यायमूर्ति रिटायर हो जाते हैं, तो उस मामले की सुनवाई के लिए नई बेंच का गठन किया जाता है। इसके बाद नई बेंच उस मामले की नए सिरे से सुनवाई करती है।