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जन्मदिन विशेष : विदेश के विद्यार्थियों को भारतीय संगीत सिखाते हैं सुरेश वाडेकर

अपनी मधुर आवाज से संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले सुरेश वाडेकर का जन्म 7 अगस्त, 1955 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। उन्हें बचपन से ही गायकी का शौक था। उनके इस शौक को जूनून बनते देर नहीं लगी वह मशहूर गायक बनना चाहते थे। उनके इस सपने को पूरा करने में उन्हें अपने परिवार का भरपूर सहयोग मिला।

सुरेश ने महज 10 साल की उम्र से ही संगीत की शिक्षा की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। उन्होंने इतनी कम उम्र में अपने गुरु पंडित जियालाल वसंत से संगीत सीखना शुरू किया था। सुरेश ने 20 साल की उम्र में एक संगीत प्रतियोगिता ‘सुर श्रृंगार’ में भाग लिया, जहां संगीतकार जयदेव और ‘दादू’ यानी निर्णायक रवींद्र जैन भी मौजूद थे।

सुरेश की आवाज से दोनों निर्णायक इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें फिल्मों में प्लेबैक सिंगर के लिए चुन लिया। रवींद्र जैन ने ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की फिल्म ‘पहेली’ में उनसे पहला फिल्मी गीत ‘वृष्टि पड़े टापुर टुपुर’ गवाया था और जयदेव ने उनसे फिल्म ‘गमन’ का ‘सीने में जलन’ गाने का मौका दिया।

इसके बाद सुरेश वाडेकर ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और देखते ही देखते अपनी शानदार प्रतिभा और मधुर आवाज की बदौलत उन्होंने जल्द ही इस क्षेत्र में अपनी खास जगह बना ली और कई फिल्मों में गीत गाये।

उन्होंने ना सिर्फ हिंदी, बल्कि मराठी के साथ कई भाषाओं की फिल्मों में गया है। इसके साथ उन्होंने भजनों के लिए भी अपनी आवाज दी है।सुरेश वाडेकर द्वारा गाये कुछ प्रमुख गीतों में मेघा रे मेघा रे, मेरी किस्मत में तू नहीं शायद, ऐ जिंदगी गले लगा ले, लगी आज सावन की, छोड़ आये हम वो, चप्पा चप्पा चरखा चले आदि शामिल हैं। गायकी के अलावा सुरेश वाडेकर का मुंबई और न्यूयॉर्क में अपना संगीत स्कूल है, जहां वह संगीत के विद्यार्थियों को संगीत की शिक्षा देते हैं। इसके साथ ही उन्होंने ‘आजिवसन म्यूजिक अकादमी’ नामक पहला ऑनलाइन संगीत स्कूल खोला है, जिसके माध्यम से वह नए संगीत महत्वाकांक्षी छात्रों को संगीत की बारीकियां सिखाते हैं।

सुरेश वाडेकर की निजी जिंदगी की बात करें तो उन्होंने क्लासिकल सिंगर पद्मा से शादी की है और उनकी दो बेटियां हैं। सुरेश वाडेकर संगीत की दुनिया में अब भी सक्रिय है और आज भी लोग उनके गीतों को सुनना काफी पसंद करते हैं।