नई दिल्ली। अयोध्या मामले पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में 22वें दिन की सुनवाई पूरी हो गई। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने एक बार फिर दोहराया कि बोर्ड के पास जमीन का मालिकाना हक था। उसे जबरन वहां से बाहर किया गया। कल मुस्लिम पक्ष की तरफ से जफरयाब जिलानी जिरह करेंगे।
सुनवाई की शुरुआत में राजीव धवन ने कहा कि सुनवाई के लिए सही माहौल नहीं। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री कहते हैं कि अयोध्या की ज़मीन हमारी है, सुप्रीम कोर्ट भी हमारा है। राजीव धवन यूपी के मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा के बयान का हवाला दे रहे थे। उन्होंने कहा कि मैं बार-बार अवमानना याचिका दाखिल नहीं कर सकता। मेरे दफ्तर के क्लर्क को दूसरे क्लर्क ने धमकी दी है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हम कोर्ट के बाहर इस तरह के व्यवहार की आलोचना करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। कोर्ट में दोनों पक्ष बिना किसी डर के जिरह कर सकते हैं। कोर्ट ने धवन से पूछा कि आपको सुरक्षा चाहिए। धवन ने इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सुरक्षा की ज़रूरत नहीं। आपकी ये टिप्पणी ही आश्वस्त करती है।
धवन ने कहा कि क्या हिन्दू पक्ष इस बात का लाभ ले सकता है कि हम नमाज नहीं पढ़ते थे, क्योंकि हमें गैरकानूनी तरीके से नमाज नहीं पढ़ने दिया गया। शुक्रवार की नमाज होती थी और वे अब इसे भी गलत करार देना चाहते हैं। गैरकानूनी तरीके से कोई अधिकार नहीं पाया जा सकता है। धवन ने कहा कि अगर मान लिया जाए कि मुकदमा नंबर 3 लिमिटेशन के आधार पर खत्म हो जाता है। तब सेवादार के साथ क्या होगा। ये एक महत्वपूर्ण सवाल है।
क्या वे 1858 से लेकर 5 जनवरी 1950 तक सेवादार रहे। 1885 में उनकी विवादित भूमि पर उपस्थिति रही। राजीव धवन ने कहा कि हम सेवादार के मामले में निर्मोही अखाड़े के अपील का समर्थन करते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्मोही अखाड़े को सेवादार नहीं मानना गलत है।
पिछली 11 सितंबर को राजीव धवन ने हिन्दू पक्ष के दावे पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या रामलला विराजमान कह सकते हैं कि उस जमीन पर मालिकाना हक़ उनका है? नहीं, उनका मालिकाना हक़ कभी नहीं रहा है। दिसंबर 1949 में गैरकानूनी तरीके से इमारत में मूर्ति रखी गई। इसे जारी नहीं रखा जा सकता।