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उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल बनी आनंदी बेन पटेल

 

 

लखनऊ। गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री और मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल अब उत्तर प्रदेश की 25वीं राज्यपाल बन गई हैं। उन्हें देश के सबसे बड़े राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनने का गौरव हासिल हुआ है।

उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला राज्यपाल हालांकि सरोजिनी नायडू रहीं लेकिन वे कार्यवाहक राज्यपाल की भूमिका में थीं और इस रूप में 15 अगस्त 1947 से 2 मार्च 1949 तक तक उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन किया। उनके अलावा उत्तर प्रदेश में दो और कार्यवाहक राज्यपाल रहे। बीबी मलिक और होरमसजी पेरोशॉ मोदी। इनसे पहले भी संयुक्त प्रान्त में चार और गवर्नर अंग्रेजों के स्तर पर नियुक्त किये गए थे।

हेरोमसोजी मोदी यानी होमी मोदी को ही वैधानिक रूप से उत्तर प्रदेश के प्रथम गवर्नर होने का गौरव हासिल है। वे 26 जनवरी,1950 से 1 जून, 1952 तक इस पद पर रहे। कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, विश्वनाथ दास, बेज़वाड गोपाल रेड्डी, चन्देश्वर नारायण प्रसाद सिंह, मोहम्मद उस्मान आरिफ़, टी.वी. राजेश्वर, बनवारी लाल जोशी और राम नाईक ही ऐसे राज्यपाल हुए जो पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा कर पाने में सक्षम हुए। इसके अतिरिक्त कुछ राज्यपाल दो वर्ष, कोई तीन साल और कोई चार साल अपने पद पर रहा। शशीकान्त वर्मा कार्यकारी राज्यपाल नियुक्त किए गए थे जो अपने पद पर 1 जुलाई 1972 से 13 नवम्बर 1972 तक रहे।

मुहम्मद शाफ़ी क़ुरैशी दो बार उत्तर प्रदेश के राज्यपाल चुने गए और दोनों बार उनका कार्यकाल बहुत कम रहा। पहली बार 3 मई 1996से 19 जुलाई 1996 तक उनका कार्यकाल रहा और दूसरी बार 17 मार्च 1998 से अप्रैल 1998 तक।

आनंदीबेन पटेल 19 जनवरी 2018 को मध्य प्रदेश की राज्यपाल बनाई गईं थीं। उस समय उन्होंने ओम प्रकाश कोहली की जगह ली थी और अब वे राम नाईक की जगह उत्तर प्रदेश में ले रही हैं लेकिन जितने बड़े राज्य की वे राज्यपाल नियुक्त हुई हैं, उतनी ही बड़ी चुनौतियां भी उनके सामने हैं।

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक दल के बीच सामंजस्य बनाए रखने की है। यहां जितने दल हैं, उतनी ही विचारधाराएं हैं। सबका साथ-सबका विकास की रीति-नीति पर चलकर ही वे सरकार और राजभवन के बीच सामंजस्य स्थापित कर सकती हैं। गुजरात उत्तर प्रदेश के मुकाबले बहुत छोटा राज्य है। वहां की परिस्थितियों और यहां की परिस्थितियों में जमीन-आसमान का अंतर है। कानून व्यवस्था उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या है। सरकार पर विपक्ष के हमले रोज ही होते रहते हैं। ऐसे में उन हमलों पर किस तरह की रीति-नीति अपनाना है। सरकार पर कितना दबाव बनाना है जिससे संतुलन बना रहे, यह भी तय करना होगा।

विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक परिवेश बनाना, परीक्षा सत्र को नियमित करना बड़ी चुनौती है। लखनऊ विश्वविद्यालय में इस बार समय पर परीक्षाफल तो घोषित कर दिया गया,लेकिन आधी-अधूरी तैयारी के साथ। कॉपियां जंची ही नहीं थी और परीक्षापफल घोषित हो गया। यह तो केवल बानगी भर है। इस तरह की शैक्षणिक अराजकता को रोकना भी नई राज्यपाल के लिए बड़ी चुनौती होगा। विश्वविद्यालय अभी भी शोध के लिए कम, डिग्री वितरण के लिए ज्यादा जाने जाते हैं, इस समस्या पर गौर करना और प्रभावी रणनीति बनाना भी उनकी गुरुतर जिम्मेदारियों में एक होगा। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की चुनौती भी छोटी नहीं है।

अतिनगरीकरण से जूझ रहे उत्तर प्रदेश को सही राह दिखाना भी उनकी जिम्मेदारी का हिस्सा होना चाहिए। प्रदेश के औद्योगिक और तकनीकी विकास में सरकार को प्रेरित करना और उसे मानसिक संबल देना भी उनके दायित्वों में शुमार होना चाहिए। महिला सशक्तीकरण की दिशा में उनके प्रयासों पर पूरे उत्तर प्रदेश की नजर होगी। विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच के राजनीतिक विवाद में तटस्थ और पारदर्शी संस्कृति को बनाए रखना उनकी बड़ी चुनौती होगी।