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ज्ञानवापी के नाम पर शिवलिंग का बनाया जा रहा है मज़ाक़ : अजीत साही

अजीत साही का सवाल: ये कैसा धर्म हो गया है हमारा कि हम दूसरों के धर्मस्थल को हथियाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जाएँ बहुत सारे स्वघोषित लिबरल लोग भी लिख रहे हैं कि ज्ञानवापी के नाम पर शिवलिंग का मज़ाक़ बनाया जा रहा है। ये लिबरल बेहद मक्कार और धूर्त लोग हैं। शिवलिंग का कोई मज़ाक़ नहीं उड़ा रहा है। मज़ाक़ अगर उड़ाया जा रहा है तो संघी और अदालती मक्कारी का। फ़व्वारे को शिवलिंग बताना और अदालत द्वारा उसको मान लिया जाना न केवल देश के क़ानून की धज्जियाँ उड़ाना है बल्कि हिंदू धर्म का अपमान भी है। ये कैसा धर्म हो गया है हमारा कि हम दूसरों के धर्मस्थल को हथियाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जाएँ? यही हमने बाबरी के साथ किया। यही हम बनारस की ज्ञानव्यापी और मथुरा की ईदगाह मस्जिद के साथ करना चाहते हैं। ऐसे हिंदुओं को शर्म आनी चाहिए। ऐसे व्यवहार से हम हिंदू धर्म की शान नहीं बढ़ा रहे हैं बल्कि हम हिंदू धर्म को बरबाद कर रहे हैं। किस मुँह से हम हिंदू लोग तालिबान और अल क़ायदा को गाली देते हैं? हम भी वही कर रहे हैं। बल्कि तालिबान धूर्त नहीं है। उनके जो दिल में है वो ज़बान पर है।

हमारे समाज में मक्कारी कूट कूट के भरी है। दिल काला है मगर माथे पर टीका है। अधर्म में पूरी तरह लिपट कर ढोंग है धार्मिक होने का। ग़रीब अनपढ़ ओबीसी और दलित जो इस झाँसे में आ चुका है उसको तो फिर भी माफ़ किया जा सकता है। लेकिन अपर कास्ट हिंदू जो पढ़ा-लिखा है, जो ख़ुद तो कॉरपोरेट मलाई खाता है और अपने बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल भेज कर विदेश नौकरी करने भगा देता है, उसको तो भगवान भी माफ़ नहीं करेगा। ये लिबरल जो कह रहे हैं कि शिवलिंग का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है ये बजरंग दल से कम ख़तरनाक नहीं हैं। भारत सरकार ने हाल ही में बताया कि पिछले साल के मुक़ाबले इस साल थोक सामान की महंगाई 15% बढ़ गई है। महंगाई की इस मार में खाने के सामान जैसे अनाज, सब्ज़ी, दूध, पनीर, घी तो हैं ही। पेट्रोल और डीज़ल भी है। केमिकल और मेटल भी हैं जिनसे फ़ैक्टरियों में माल बनता है। सरकार ने ये भी माना कि थोक सामानों की महंगाई की ये दर तेरह महीने से “डबल डिजिट” में चल रही है। यानी हर महीने 10% से ऊपर। मतलब आपके रोज़मर्रा की सभी ज़रूरी और ग़ैर-जरूरी चीज़ों के दाम पिछले एक साल से ज़्यादा टाइम से सरपट भाग रहे हैं। जब आप कोविड से मरे अपने घरवालों की लाशों को गंगा में फेंक रहे थे तब ये महंगाई दिन दूनी हुई, और जब आप उन मरे घरवालों को भूल कर बीजेपी को वोट डाल रहे थे तो रात चौगुनी हो गई। और सरकार ने ये भी माना की महंगाई की ये दर ऐतिहासिक है, यानी इससे पहले कभी भी इतनी तेज़ रफ़्तार से थोक के दाम नहीं बढ़े हैं। रुपया नाम का अंडरवियर तो ख़ैर गिर कर अब एड़ी पे चिपक गया है।