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2G स्पेक्ट्रम आवंटन: कांग्रेस के जीरो लॉस थिअरी को CAG ने आंकड़ों से उधेड़ा

सीबीआई की स्पेशल कोर्ट से 2G घोटाले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और कनिमोझी सहित सभी आरोपियों को क्लीन चिट मिलने के बाद कुछ कांग्रेस नेता एक बार फिर जीरो लॉस थिअरी को जोरशोर से दोहरा रहे हैं। इस बीच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने आकंड़ों से इस दावे को उधेड़ दिया है।

 CAG के एक अधिकारी ने बताया कि 2G टेलिकॉम लाइसेंस आवंटन से काफी पहले 5 नवंबर 2007 को एस टेल लिमिटेड ने प्रधानमंत्री को स्वेच्छा से खत लिखकर अखिल भारतीय लाइसेंस के लिए स्पेक्ट्रम शुल्क के अतिरिक्त 6,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त रेवेन्यू शेयर देने का प्रस्ताव दिया। बाद में एस टेल ने 6.2 MHz 2G स्पेक्ट्रम के 10 साल के आवंटन के लिए अपने ऑफर को बढ़ाकर 13,752 करोड़ रुपये कर दिया। इसने प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबले के लिए और ऊंची बोली लगाने का प्रस्ताव दिया। सरकार प्रतियोगिता के आधार पर लाइसेंस बांटे, यह निर्देश लेने के लिए एस टेल सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन वह रेस से बाहर हो गया। अधिकारी ने कहा कि यदि एस टेल के ऑफर को एक संकेतक मान लें तो 122 नए 2G लाइसेंस से देश को 65,900 करोड़ रुपये मिले होते। 
केंद्रीय ऑडिटर ने 2010 में 2G स्पेक्ट्रम आवंटन पर अपनी रिपोर्ट में प्राइस बैंड रेंज का जिक्र करते हुए ‘पहले आओ पहले पाओ’ नीति से लाइसेंस वितरण से अनुमानित नुकसान की गणना की थी। CAG ने टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) के द्वारा अनुशंसित 3G स्पेक्ट्रम नीलामी कीमत के आधार पर 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान की बात कही थी। तब 2G सर्विसेज वास्तव में 2.75 G सर्विसेज थीं, इसलिए इसकी तुलना 3G नीलामी कीमत से की थी। 
ऑडिटर ने कहा था, ‘यदि 3G रेट पर कीमत की गणना करें तो सरकार द्वारा अर्जित, 9,004 करोड़ रुपये के मूल्य के मुकाबले यह 1,11,512 करोड़ रुपये होता। दोहरी तकनीक और 6.2 MHz के अनुबंधित मात्रा के बाद कुल मूल्य 1.76 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो सकता था। 
एस टेल के ऑफर को ठुकराने को लेकर बचाव में टेलिकॉम डिपार्टमेंट ने आश्चर्यजनक रूप से तर्क दिया कि एस टेल ने अपना ऑफर सुप्रीम कोर्ट में वापस ले लिया था इसलिए सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ। वास्तव में एस टेल ने अपना केस सुप्रीम कोर्ट से 2010 में वापस लिया था यानी सरकार द्वारा 2G लाइसेंस आवंटन के 2 साल बाद। 
यूनिटेक और स्वान द्वारा इक्विटी सेल के आधार पर ऑडिटर ने 2008 में 122 लाइसेंस और 35 दोहरी तकनीक अप्रूवल के लिए कुल मूल्य की गणना 58,000 करोड़ से 68,000 करोड़ के बीच की थी, जबकि सरकार को वास्तव में 12,386 करोड़ रुपये की ही प्राप्ति हुई।