नई दिल्ली। सतलुज-यमुना लिंक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पंजाब सरकार का पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 असंवैधानिक है और इसे नहीं माना जा सकता। सतलुज-यमुना लिंक नहर बनकर रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा की पंजाब को एकतरफ़ा क़ानून बना कर राज्यों के बीच के जलबंटवारे समझौते रद करने का अधिकार नही। अदालत के इस फैसले से नाराज पंजाब से कांग्रेस संसद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसके साथ कांग्रेस के विधायकों को भी कहा है कि वो विधानसभा से इस्तीफा दे।
मामले पर अदालत के इस फैसले के ठीक बाद अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का 2002 और 2004 का फैसला प्रभावी हो गया जिसमें केंद्र सरकार को नहर का कब्जा लेकर लिंक निर्माण पूरा करना है।
बता दें कि 2004 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने पंजाब विधानसभा में ‘द पंजाब वाटर एग्रीमेंट टर्मिनेशन एक्ट’ पास करके हरियाणा को जाते पानी पर रोक लगा दी थी। तब अकाली-भाजपा ने भी सरकार का साथ दिया था। इस एक्ट का मकसद सतलुज यमुना लिंक प्रोजेक्ट को बंद करना था, जिसके तहत हरियाणा को पानी दिया जाना था।
प्रमुख घटनाक्रम: कब क्या हुआ
19 सितंबर 1960
भारत व पाकिस्तान के बीच विभाजन पूर्व रावी व ब्यास के अतिरिक्त पानी को 1955 के अनुबंध द्वारा आवंटित किया गया। पंजाब को 7.20 एमएएफ (पेप्सू के लिए 1.30 एमएएफ सहित), राजस्थान को 8.00 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर को 0.65 एमएएफ पानी आवंटित किया गया था।
24 मार्च 1976:
केंद्र ने अधिसूचना जारी कर पहली बार हरियाणा के लिए 3.5 एमएएफ पानी की मात्रा तय की।
13 दिसंबर 1981
नया अनुबंध हुआ। पंजाब को 4.22, हरियाणा को 3.50, राजस्थान को 8.60, दिल्ली को 0.20 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर के लिए 0.65 एमएएफ पानी की मात्रा तय की गई।
8 अप्रैल 1982
इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गांव के पास नहर खुदाई के काम का उद्घघाटन किया। विरोध के कारण पंजाब के हालात बिगड़ गए।
24 जुलाई 1985
राजीव-लौंगोवाल समझौता हुआ। पंजाब ने नहर बनाने की सहमति दी।
वर्ष 1996
समझौता सिरे नहीं चढ़ने पर हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
15 जनवरी 2002
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक वर्ष में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया।
4 जून 2004
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की याचिका खारिज हुई।
2004
पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर तमाम जल समझौते रद कर दिए। संघीय ढांचे की अवधारण पर चोट पहुंचने का डर देखकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा। 12 वर्ष ठंडे बस्ते में रहा।
20 अक्टूबर 2015
हरियाणा की मनोहर लाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया।
26 फरवरी 2016
इस अनुरोध पर गठित पांच जजों की पीठ ने पहली सुनवाई की। सभी पक्षों को बुलाया।
8 मार्च 2016
8 मार्च को दूसरी सुनवाई। लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मई २०१६ में फैसला सुरक्षित रख लिया था। पंजाब सरकार बिना कानून के डर के जमीन लौटाने का एलान कर चुकी है। अब यह नया मामला भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है।