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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्कृत कालेजों में शिक्षकों की नियुक्तियां जांच के घेरे में

 संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्कृत कालेजों में हुई शिक्षकों की नियुक्तियां जांच के घेरे में आ गई हैं। शासन के निर्देश पर वर्ष 2014 से 2018 के बीच हुई नियुक्तियों की जांच शुरू कर दी गई है। यही नहीं विश्वविद्यालय ने नियुक्तियों की पत्रावलियां डीआइओएस को सौंप दिया है। फाइलों में व्‍यप्‍त अनियमितताएं को भी खंगाली जा रहीं हैं।

यदि गड़बड़ियां मिली तो नियुक्तियां निरस्त भी होने की संभावना है। जांच की जद में विश्वविद्यालय से संबद्ध 165 संस्कृत कालेजों की लगभग 650 शिक्षकों की नियुक्तियां हैं। आरोप है कि तत्कालीन कुलपति प्रो. यदुनाथ दुबे के कार्यकाल में संबद्ध संस्कृत कालेजों में बड़े पैमाने पर मनमाने तरीके से शिक्षकों की नियुक्तियां की गई। संबद्ध कालेजों ने नियमों की अनदेखी कर समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी किया गया। जिसकी प्रसार संख्या काफी कम है। नियुक्तियों में अनियमितता की शिकायत तत्कालीन कुलसचिव प्रभाष द्विवेदी ने शासन से भी की थी। समझा जा रहा है कि कुलसचिव की शिकायत पर ही शासन नियुक्तियों की जांच करा रहा है। कुलसचिव राज बहादुर ने बताया कि संबंधित शिक्षकों की पत्रावलियां डीआइओएस को सौंप दी है। इसे लेकर संस्कृत कालेजों में खलबली मची हुई है। 130 शिक्षकों की नियुक्तियां फंसी जांच के फेर में सूबे के 60 कालेजों में करीब 130 शिक्षकों की नियुक्तियां भी फंस गई हैं।

नियुक्तियों पर रोक होने के कारण संस्कृत विश्वविद्यालय संबद्ध कालेजों को नियुक्तियों के लिए अनुमोदन नहीं दे रहा है जबकि नियुक्तियों पर रोक लगने से पहले ही सूबे के कई महाविद्यालय विज्ञापन करा चुके थे। विश्वविद्यालय इनमें से कई महाविद्यालयों को चयन समिति के लिए विशेषज्ञ भी नामित कर चुका है। कुछ कालेज साक्षात्कार भी करा चुके हैं। इस बीच शासन ने आयोग से नियुक्तियां करने का फरमान जारी कर दिया। वहीं अब तक आयोग गठन नहीं हो सका है। लंबी प्रक्रिया होने के कारण आयोग के गठन में देर लगना स्वभाविक है। ऐसे में संस्कृत कालेजों में शिक्षकों की नियुक्तियां फिलहाल अधर में लटक हुई हैं। दूसरी ओर सूबे में तमाम ऐसे महाविद्यालय हैं जहां एक व दो शिक्षक रह गए हैं। शिक्षकों के अभाव में संबंधित महाविद्यालयों में पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है।