उक्त नेता के अनुसार पार्टी की कार्यपद्धति बदली है। खासतौर से यूपी में इस बात पर जोर दिया गया है कि हवा-हवाई राजनीति करने वाले नेताओं को तरजीह न मिले। बल्कि संगठन में कार्य करने वालों को ही पद से लेकर उम्मीदवारी तक में स्थान मिले। शाह इस मामले में अडिग हैं और उन पर किसी नेता का दबाव काम नहीं आएगा।
सूत्र बताते हैं कि दावेदारों की छंटनी के काम में टीम शाह बीते 3 माह से सक्रिय है। संघ और भाजपा संगठन से नाम मंगवाने के अलावा अलग-अलग स्तर पर 5 सर्वे कराए गए हैं। सबसे पहले शाह ने प्रदेश प्रभारी और राज्य संगठन महामंत्री के जरिए प्रदेश भाजपा के मंडल, जिला और प्रदेश से उपयुक्त दावेदारों की विधानसभावार सूची मंगाई।
इसके बाद शाह के निर्देश पर प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल की देखरेख में यूपी में त्रिस्तरीय सर्वे कराया गया। ऐसा ही उत्तराखंड के मामले में देखने को मिला है। पहले सर्वे के पैनल में सीटवार चुनिंदा उम्मीदवारों के नाम भेजकर सीधे जनता की राय ली गई। इसमें अव्वल आए 3 उम्मीदवारों के नाम का पैनल बनाकर दूसरे सर्वे के जरिए उन पर कार्यकर्ताओं की राय ली गई।
तीसरे सर्वे में उन उम्मीदवारों के बारे में संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं की राय ली गई। इसके अलावा यूपी और उत्तराखंड की संघ इकाई ने भी अपने स्तर पर कुछ कार्यकर्ताओं को सीटवार भेजकर उम्मीदवारों की लोकप्रियता का सर्वे कराया है, जिसकी रिपोर्ट भी शाह को भेजी गई है।
इन तमाम कवायदों के बावजूद भाजपा अध्यक्ष ने गुजरात की एक अति विश्वसनीय सर्वे कंपनी से अलग से उम्मीदवारों के नाम, सीट की सामाजिक रचना और स्थानीय मुद्दे का अध्ययन वाला सर्वे करवाया है। जिसे लेकर वह नेताओं के साथ होने वाली बैठक में बैठ रहे हैं।
बताया जा रहा है कि इन तमाम दहलीजों को पार करने के बाद जो नाम अव्वल बनकर उभरे हैं, शाह ने उन नामों को जिला और क्षेत्रीय संगठन के सामने चर्चा के लिए रखा है। इस पर संघ के प्रांत और क्षेत्रीय प्रचारकों की राय भी ली गई है।
कुछ नामों पर राय जुदा होने की वजह से शाह ने तीन-चार दिन पहले यूपी के क्षेत्रीय अध्यक्षों को तलब कर उनसे मंत्रणा भी की है। साथ ही उन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा पाल रहे वर्तमान जिलाध्यक्षों को स्पष्ट कर दिया है कि वे पहले जिलाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दें उसके बाद उम्मीदवार की लाइन में आएं।