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बड़ा खुलासा: सुप्रीम कोर्ट के आधे जजों ने नहीं दिया अपनी संपत्ति का ब्यौरा….

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने के फैसले वाले प्रस्ताव के पारित होने के लगभग आठ वर्ष बाद भी देश की सर्वोच्च अदालत के 25 में से आधे जजों ने अपनी संपत्ति की जानकारी नहीं दी है। इससे सुप्रीम कोर्ट के नियुक्तियों पर कलीजियम के फैसले को सार्वजनिक करने के हाल के प्रशासनिक सुधार को लेकर भी मुश्किल हो सकती है।

संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक नहीं करने का कारण यह है कि यह स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं। सुप्रीम कोर्ट के 25 जजों में से केवल 13 ने ही अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक की है। संपत्ति का खुलासा करने वालों में देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जे चेलामेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर, ए के सीकरी, एस ए बोब्दे, आर के अग्रवाल, एन वी रामन्ना, अरुण मिश्रा, ए के गोयल, आर भानुमति और ए एम खानविलकर शामिल हैं। हाल ही में पदोन्नत किए गए जजों में से अधिकतर ने अपनी संपत्ति की जानकारी नहीं दी है। बार से सीधे जज बनाए गए आर एफ नरीमन, उदय उमेश ललित और एल नागेश्वर राव ने भी अपनी संपत्ति का खुलासा नहीं किया है।

देश के तत्कालीन चीफ जस्टिस आर एम लोढा की ओर से जज बनाए जाने से पहले ये सभी काफी सफल वकील थे। 2009 में देश के तत्कालीन चीफ जस्टिस के जी बालाकृष्णन के तहत जजों की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने का फैसला किया गया था। इस फैसले को काफी समय बीत चुका है, लेकिन इसके बावजूद व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ है। संपत्ति की घोषणा के लिए कोई मानक प्रारूप नहीं है और इसके नतीजे में अक्सर इनकी तुलना नहीं की जा सकती। इसके अलावा ऐसी कोई जानकारी नहीं दी जाती जिससे यह पता चल सके कि पद संभालने से पहले और बाद में जजों की कितनी संपत्ति थी।

इससे सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाल ही मे कलीजियम के नियुक्तियों को लेकर फैसले की प्रक्रिया सार्वजनिक करने के कदम को लेकर भी मुश्किल हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर को कहा था कि जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण से जुड़े फैसलों और उनके कारणों को सार्वजनिक किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जी एस सिंघवी इस कदम को लेकर आशावादी हैं। उन्होंने कहा, ‘यह निश्चित तौर पर एक अच्छा कदम है। भारत एक बहुत बड़ा देश है। बदलावों में समय लगता है। यह समय के साथ काम करने लगेगा।’ एक और पूर्व जज ए के पटनायक का कहना था कि इससे कुछ पारदर्शिता आएगी, जिसकी जनता लंबे समय से मांग कर रही थी। उन्होंने कहा, ‘चयन करने और न करने को लेकर हमेशा पक्षपात का संदेह रहता था। इससे निश्चित तौर पर स्थितियों में सुधार होगा। इसके कुछ फायदे होंगे।’ जस्टिस पटनायक ने कहा कि इससे सरकार के लिए भी कलीजियम की ओर से सुझाए गए नामों को खारिज करना मुश्किल हो जाएगा।