6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई। जगह-जगह इसके विरोध में प्रदर्शन हुए और कई जगह दंगे शुरू हो गए। नतीजतन केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार बड़ा कदम उठाते हुए कानून व्यवस्था बिगड़ने के मुद्दे पर चार राज्यों की भाजपा सरकारों को बर्खास्त कर दिया।
जिसमें उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार, हिमाचल प्रदेश की शांता कुमार, राजस्थान की भैरों सिंह शेखावत और मध्यप्रदेश की सुंदर लाल पटवा की सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। देश में ऐसा पहली बार हुआ था कि केंद्र ने एक साथ चार सरकारों को बर्खास्त किया। हालांकि इसका भाजपा को रणनीतिक लाभ ही मिला और चारों राज्यों में उसके बाद भाजपा ने ज्यादा मजबूती से अपनी वापसी की।
केंद्र की सत्ता में पहली बार आई भाजपा
अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर के मुद्दे को भाजपा ने पूरे जोर-शोर से हवा दी। चार राज्यों में सरकारों को बर्खास्त करने के मुद्दे को भी भाजपा ने प्रमुखता से उठाया। इसी बीच मंदिर के पक्ष में बने माहौल और हिंदुत्व की लहर का भाजपा ने पूरा फायदा उठाया। अयोध्या में राम मंदिर की लहर पर सवार होकर ही पहली बार भाजपा केंद्र में सत्ता तक पहुंची। 1996 में हुए आम चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने पहली बार केंद्र में सरकार बनाई। हालांकि पूर्ण बहुमत साबित न कर पाने के कारण वह सरकार मात्र 13 दिन ही टिक पाई। हालांकि दो साल बाद फिर हुए लोकसभा चुनावों में एक बार फिर भाजपा की वापसी हुई और वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
देश में तेज हुई हिंदुत्व की राजनीति
अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने के बाद एक बड़ा बदलाव राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी हुआ। इस घटना के बाद देश में हिंदुत्व की राजनीति तेज हुई, और राजनीतिक दलों के बीच भी खांचे खिंच गए। भाजपा ने जहां हिंदुत्व की राह पकड़ी, वहीं कई दल मुस्लिमों के पक्ष में आ खड़े हुए। राजनीति के जानकारों की मानें तो इस घटना के बाद ही देश में धर्म आधारित राजनीति को हवा मिली, जिसका राजनीतिक दलों ने जमकर फायदा उठाया।